Book Title: Apbhramsa Pandulipi Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 98
________________ पाठ ४ सुदंसणचरिउ ट्ठाण। वरवज विसह णारायणाम संहयणधाम। अट्ठोत्तरसयलक्खणणिवास हयकम्मपास। चउतीसातिसय विसेससोह उप्पण्णवोह। देवेंदमउडमणिघट्टपाय गयरोसराय। सोमत्तजित्तछणइंदकंति जिणवर हवंति। चक्कवइ चउद्दहरयणसिद्ध णवणिहिसमिद्ध। वलएव वासुएव वि महल्ल। पडिवक्खमल्ल। कप्पामर सोलह विह महंत गुणईड्डिवंत । णवअणुदिसपंचाणुत्तरिल्ल। तिहुयणि महल्ल। तहो सोक्खइ को वण्णेवि सक्कु । सक्कु वि असक्कु। पद्धडिया णामें चित्तलेह पयविसमएह ॥ घत्ता॥ पंच वि गुरु छुडु समरइ णरु अइसय भत्तिय जुत्तउ। ण चिरावइ मोक्खु वि पावइ णहि गमु केत्तिय मत्तउ॥९॥ आयण्णि पुत्त जह आगमि सत्त वि वसण वुत्तु । सप्पाइ दुक्खु इह दिति एक भवि दुण्णिरिक्खु । विसय वि ण भंति जम्मंतर कोडिवि दुहु जणंति। चिरु रुद्ददत्तु णिवडिउ णरयण्ण वि विसयजुत्तु । वहु आयरेण जो रमइ जूउ वड्डप्फरेण। सो छोहजुत्तु आहणइ जणणि सस घरिणि पुत्तु । जूवइ रमंतु णलु तह य जुहिट्ठिल्लु विहुर पत्तु । मासासणेण वड्डेइ दप्पु दप्पेण तेण। अहिलसइ मज्जु जूवइ रमेइ वहुदोससज्जु । पसरइ अक्कित्ति तें कज्जें कीरइ तहु णिवित्ति। जंगलु असंतु वग रक्खसु मारिउ णरइ पत्तु । मइरापमत्तु कलहेप्पिणु हिंसइ इट्ठ मित्तु । रच्छहि पडेइ उब्भविकरु विहलंघलु णडेइ। होंता सगव्व गय जायव मज्जें खयहो सव्व। साइणि व वेसु रत्तायरिसण दरिसइ सुवेसु। तहि जो वसेइ सो कायरु उच्छि?उ असेइ । वेसाइसत्तु णिद्धणु हुयउ इह चारुदत्तु । कयदीणवेसु णासंतु परंमुहु छुट्टकेसु। जे सूर होंति सवरा हु वि सो ते णउ हणंति। वणि तिण चरंति णिसुणेवि खडुक्कर णिरु डरंति। वणमयउलाइ किह हणइ मूद किउ तेण काइ। पारद्धिरत्तु चक्कवइ णरइ गउ वंभदत्तु । चलु चोरु घिटु गुरुमायवप्पु वहिणइ ण इट्ठ। णियभुयवलेण वंचइ ते अवर वि सो छलेण। भवकूवि छुड्डु णउ णिंदुभुक्खु पावेइ मूद । पद्धडिय एह सुपसिद्धी णामें चंदलेह ॥ घत्ता॥ पाविज्जाइ वंघिवि णिज्जइ। वित्था वि रहि चच्चरे । दंडिज्जइ तह खंडिजइ । मारिजइ अपभ्रंश-पाण्डुलिपि चयनिका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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