Book Title: Apbhramsa Pandulipi Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 103
________________ पाठ६ पउमचरिउ डेहिं दिजंतएहिं। गायणगीयहिं गिज्जंतइहिं। मणिमइयउ रइयउ देहलिउ। मोत्तिय कणएहिं रंगावलिउ। सोवण्ण दंड मणि तोरणई। वद्धई सुरवर मण चोरणइं॥ धत्ता ॥ सीयवलई पइ सारियई। जणे जय जय कारिजंताई। थियइ अउज्झहे अविचलई। रइ सोक्ख सई भुंजंताई ॥ १४ ॥ब॥ ॥२१ । कोसलणंदणेण सकलते णियघरु आएं। आसाढट्ठमिहिं किउ न्हवणु जिणिंदहो राएं। सुर समर सहासेहिं दुम्महेण किउ न्हवणु जिणिंदहो दसरहेण ॥ पट्टवियई जिणतणु रोवयाई। देविहिं दिण्णई गंधोवयाई ॥ सुप्पहे नवर कंचुइ न पत्तु । पहु पभणइं रहसुच्छलिय गत्तु। कहे काई नियंविणि मणेविसण्ण चिरचित्तिय भित्ति व थिय विसन्न । पणवेप्पिणु वुच्चइ सुप्पहाए किर काई महुं त्तणियए काए॥ जइ हउं जि पाणवल्लहिय देव। तो गंध सलिल पावइ न केव। तहिं अवसरे कंचुइ दक्क पासु। छण ससि व निरंतर धवलियासु॥ गय दंतु अयंगमु दंड पाणि अणियच्छिय पहु पक्खलिय वाणि॥ घत्ता॥ गरहिउ दसरहेण पई कंचु न काई चिराविउ। जलु जिण वयणु जिह सुप्पहहे दवत्ति ण पाविउ ॥१॥ पणवेप्पिणु तेण वि ण वि वुत्तु एव। गयं दिवहा जोव्वणु ल्हसिउ देव। पढमाउसु जर धवलंति आय पुणु असइ व सीस वलग्ग जाय। गइ तुट्टिय विहडिय संधि वंध न सुणंति कण्ण लोयण निरंध। सिरु कंपइ मुहे पक्खलइ वाय। गय दंत सरीरहो णट्ठ छाय। परिगलिउ रुहिरु थिउ णवर चम्मु। महु एत्थु जे हुउ नं अवरु जंमु। गिरि णइ पवाह न वहंणि पाय। गंधोवउ पावउ केम राय। वयणेन तेण किय वहु वियप्पु। गउ परम विसायहो राम वप्पु। सच्चउ चलु जीविउ कवलु सुक्खु । तं किज्जइ सिज्झइ जेण मोक्खु॥ घत्ता॥ सुहु मुह विंदु समु दुहु मेरु सरिसु पवियंभइ। वरि तं कंमु किउ जें पउ अजरामरु लब्भई ॥२॥ कं दिवसु वि होसइ आरिसाहुं । कंचुइ अवत्थ अम्हारिसाहुं । को हउं का मंहि कहो तणउं दव्यु। सिंहासणु छत्तइं अथिरु सव्वु। जोवणु सरीरु जीविउ धिगत्थु । संसारु अणत्थु अत्थु। विसु विसय वंधु दिढ वंधणाई। घर दारई परिहव कारणाई। अपभ्रंश-पाण्डुलिपि चयनिका Jan Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org

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