Book Title: Apbhramsa Pandulipi Chayanika Author(s): Kamalchand Sogani Publisher: Apbhramsa Sahitya AcademyPage 94
________________ पा० र महापुराण रणालं। जस्सायासगामिणो। खयरसामिणो। विहयहिययसल्ला। णमिविणमीसणामया। णिरहणिम्मया। जायया वसिल्ला ॥ पुणु वेयड्डहो कुलिसें ताडिउ। पुवकवाडु जेण उग्घाडिउ। णट्टमालि साहिउ मालायरु। पयजुए पाडिउ णं पायडुणरु। असमु वइरु किं तेण समाणउं। जं माणुसु रित्तउ उत्ताणउं। पिंछकमंडलमंडियहत्थहो रोसु जणइ तं मुणिवर सत्थहो। चक्कवट्टि गुणमणिरयणायरु। आउ जाहुं अवलोयहि भायरु। मा पज्जलउ तासु कोवाणलु । मा णिद्दलउ तुहारउ भुयवलु। हा मा दुरयरएहिं विहिजउ। पोयणपुर पायारु दलिजउ। मा उच्छलउ छइयदिसमेरठ हयखुरखयखोणीधूलीरउ। मा धावंतु महंत महारह मा पिसुणहं पूरंतु मणोरह। काउ कंदलावलिहि म विरस। पलयकाल सोणिउं मा करिसउ। देहि कप्पु णियदप्पु हरेप्पिणु। पेक्खु भरहु भावे पणवेप्पिणु। तं णिसुणेप्पिणु वाहुवलीसें। पडिजंपिउ भूभंगविहीसें।घित्ता॥ कंदप्पु अदप्पु ण होमि हउं दूययकरमि णिवारिउ संकप्पें सो महु केरएण। पहु डज्झिहइ णिरारिउ॥ १८ आरणालं॥ जं दिण्णउं महेसिणा दुरियणासिणा णयरदेसमेत्तं। तं मह लिहियसासणं कुलविहूसणं हरइ को पहुत्तं ॥ ब॥ केसरिकेसरु वरसइधणयलु। सुहडहो सरणु मज्झु धरणीयलु। जो हत्थेण छिवइ सो केहउ किं कयंतु कालाणलु जेहउ। हउं सो पणवमि को सो भण्णइ। महिखंडेण कवण परमुण्णइ। किं जम्मणे देविहिं अहिसिंचित किं मंदरगिरिसिहरे समच्चिउ। किं तहो अग्गइ सुरवइ णच्च्छि सिरिसइरिणियए सो रोमंचिउ। चक्कु दंडु तं तासु जे सारउ। महु पुणु णं कुंभारहु केरउ। करिसूयररहवरडिंभयरहं। णर णिहणमि रणे जे वि महारह। भरहु भरइ किं मज्झु भुयाभरु ता चुक्कइ सुंमरइ जइ जिणवरु ॥घत्ता ॥ तहो मेइणि महु पोयणणयरु आइजिणिंदिं दिण्णउ। अभिडउ भिडउ असि सिहसिहहिं। जइ ण सरइ पडिवण्णउं॥१९ आरणालं॥ ता दूएण जंपियं किं सुविप्पियं भणमि भो कुमारा। वाणा भरहपेसिया पिंछभूसिया होंति दुण्णिवारा॥ ब॥ अपभ्रंश-पाण्डुलिपि चयनिका Jan Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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