Book Title: Apbhramsa Pandulipi Chayanika Author(s): Kamalchand Sogani Publisher: Apbhramsa Sahitya AcademyPage 95
________________ पत्थरेण किं मेरु दलिज्जइ । किं खरेण मायंगु खलिज्जइ । खज्जोएं रवि णित्तेइज्ज । किं घुट्टेण जलहि सोसिज्जइ । गोपएण किं णहु माणिज्जइ । आण्णार्णे किं जिणु जाणिज्जइ । वायसेण किं गरुडु णिरुज्झइ । णवकमलेण कुलिसु किं विज्झइ । करिणा कें मयारि मारिज्जइ । किं वसहेण वग्घु दारिज्जइ । किं हंसें ससंकु धवलिज्जइ । किं मणुएण कालु कवलिज्जइ । डिंडुहेण किं सप्पु डसिज्जइ । किं कम्मेण सिद्ध वसि किज्जइ । किं णीसासें लोहु णिहिप्पइ। किं पदं भरहुणराहिउ जिप्पई ॥घत्ता ॥ हो होउ पहुच्चए जंपिएण । राउ तुहुप्परि वग्गइ । करवालहिं सूलहिं सव्वलहिं । परइ रणंगणि लग्गइ ॥ २० आरणालं ॥ ता भणियं सहेउणा मयरकेउणा एत्थ कहि मि जाया । जे परदविणहारिणो कलहकारिणो ते जयम्म राया ॥ब | वुड्ढउ जंवुउ सिउ सद्दिज्जइ एण णाई महु हासउ दिज्जइ । जो वलवंतु चोरु सो राणउं । णिव्वलु पुणु किज्जइ णिप्पाणउं । हिप्पइ मिगहु मिगेण जे आमिसु । हिप्पइ मणुयहु मणुएण जे वसु । रक्खाकंखए जूहु रएप्पिणु एक्कहो केरी आण लएप्पिणु । ते णिवसंति तिलोइगविट्ठउ । सीहे केरउ विंदु ण दिट्ठउ। माणभंगे वरि मरणु ण जीविउ एहउ दूय सुट्ठ मई भाविउ । आवउ राउ घाउ तहो दंसमि । संझाराउ वं खणे विद्धंसमे । सिहिसिहाहिं देविंदु वि ण सहइ । महु मणसियहु विसह को विसहइ । एक्कु जे परउव्वारु णरिंदहो । जइ पइसरइ सरणु जिणइंदहो ॥ घत्ता ॥ संघट्टमि लुट्टमि गयघडउ दलमि सुहड रणमग्गए । पहु आवड दावउ वाहुबलु महु वाहुवलिहि अग्गए ॥ २१ आरणालं ॥ ता दूयउ विणिग्गओ । णियपुरं गओ । तम्मि णिवणिवासं । सो विण्णव सायरं । सारसायरं । पणविओ महीसं । पणविओ महीसं ॥ ब ॥ 1 विसमु देव वाहुवलि णरेसरु । णेहु ण संधइ संधइ गुणे सरु । कज्जु ण वंधइ वंधइ परियरु । संधि ण इच्छा इच्छइ संयरु । पदं णउ पेच्छइ पेच्छइ भुवलु । आणण पालइ पालइ णियछलु । माणु ण छंडइ छंडइ भयरसु । दइउ ण चिंता चिंतइ पोरिसु । संति ण मग्गइ मग्गइ कुलकलि । पुहइ ण देइ देइ वाणावलि । तुज्झु ण णवइ णवइ मुणितंडर अंगु ण कड्ड कड्डइ खंडउ । देव ण देइ भाइ तुह पोयणु । पर जाणमि देसइ रणभोयणु । ढोयइ रयणइं णउ करिरयणई। ढोएसइ धुउ णरउररयणई ॥ घत्ता ॥ संताणु कुलक्कमु गुरुकहिउ । खत्तधम्मु णउ वुज्झइ । मज्जाय विवज्जिउ सामरसु अवसें दाइ जुज्झइ ॥ २२ आरणालं ॥ ता प Jain Education International अपभ्रंश - पाण्डुलिपि चयनिका For Private & Personal Use Only. (80) www.jainelibrary.orgPage Navigation
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