Book Title: Apbhramsa Pandulipi Chayanika Author(s): Kamalchand Sogani Publisher: Apbhramsa Sahitya AcademyPage 82
________________ ठोलियों के दिगम्बर जैन मन्दिर का शास्त्र-भण्डार यह शास्त्र-भण्डार ठोलियों के दिगम्बर जैन-मन्दिर, घी वालों का रास्ता, जौहरी बाजार, जयपुर में स्थित है। भण्डार में सबसे प्राचीन प्रति ब्रह्मदेव कृत 'द्रव्यसंग्रह टीका' की है जो संवत् १४१६ (सन् १३५९) की लिखी हुई है। इसके अतिरिक्त योगीन्द्रदेव का परमात्मप्रकाश सटीक, हेमचन्द्राचार्य का शब्दानुशासनवृत्ति एवं पुष्पदन्त का आदिपुराण आदि रचनाओं की भी प्राचीन प्रतियां उल्लेखनीय हैं। शास्त्र-भण्डार पंडित लूणकरणजी पांड्या यह लूणा पांड्या के मन्दिर के नाम से अधिक प्रसिद्ध है। पंडित लूणकरणजी जैन यति थे, जो पांड्या कहलाते थे। सबसे प्राचीन प्रति इस भण्डार में अपभ्रंश के 'परमात्मप्रकाश' की है जो संवत् १४०७ में लिखी गयी थी। शास्त्र-भण्डार श्री दिगम्बर जैन मन्दिर बड़ा तेरापंथी जयपुर नगर बसने के कुछ समय बाद ही इस मन्दिर का निर्माण हुआ। इस मन्दिर में स्थित शास्त्र-भण्डार जयपुर के अन्य शास्त्र-भण्डारों की अपेक्षा उत्तम एवं वृहद् है। भण्डार में उपलब्ध अपभ्रंश साहित्य महत्त्वपूर्ण है। अपभ्रंश एवं प्राकृत के ग्रन्थों की प्राचीन प्रतियों के अतिरिक्त कुछ ऐसी रचनायें भी हैं जो केवल इसी भण्डार में सर्वप्रथम उपलब्ध हुई हैं। प्राचीन प्रतियों में कुन्दकुन्दाचार्य कृत 'प्राकृत पञ्चास्तिकाय' की संवत् १३२९ की प्रति मिली है जो भण्डार में उपलब्ध प्रतियों में सबसे प्राचीन प्रति है। यहाँ महाकवि पुष्पदन्त विरचित आदिपुराण की एक सचित्र प्रति भी उपलब्ध हुई है। यह प्रति संवत् १५९७ की है। इसमें ५०० से भी अधिक रंगीन चित्र हैं। (इसका प्रकाशन जैनविद्या संस्थान से सन् २००६ में कर दिया गया है।) अपभ्रंश भाषा के ग्रन्थों में वारक्खरी दोहा, दामोदर कृत णेमिणाह चरिउ तथा तेजपाल कृत संभवणाह चरिउ उल्लेखनीय हैं। अपभ्रंश भाषा की महाकवि धवल-रचित हरिवंशपुराण की एक प्राचीन एवं सुन्दर प्रति भी यहाँ है। शास्त्र-भण्डार दिगम्बर जैन मंदिर पाटोदी इस मंदिर का निर्माण जयपुर नगर की स्थापना के साथ हुआ था और उसी समय यहाँ शास्त्र-भण्डार की भी स्थापना हुई। इसलिये यह शास्त्र भण्डार २०० वर्ष से भी अधिक पुराना है। भंडार में अपभ्रंश महाकवि पुष्पदन्त कृत 'जसहरचरिउ' की अपभ्रंश-पाण्डुलिपि चयनिका Jan Education International For Private & Personal Use Only www.janelibrary.orgPage Navigation
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