Book Title: Apbhramsa Bharti 1994 05 06
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
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अपभ्रंश-भारती 5-6
जनवरी-जुलाई-1994
पउमचरिउ और रामकथा-परम्परा
- सुश्री मधुबाला नयाल
रामकथा-परम्परा कभी समाप्त न होनेवाली ऐसी परम्परा है जो युगीन सन्दर्भो से जुड़कर अपनी सार्थकता सिद्ध करती रही है। विविध कवियों के हाथों रूप में यत्किंचित् परिवर्तन के बाद भी रामकथा की उपादेयता और लोकप्रियता में कोई अन्तर नहीं आया है।
रामकथा की अपभ्रंश काव्य-परम्परा में स्वयंभू का 'पउमचरिउ' अपने मौलिक कथाप्रसंगों, चरित्र-संघट्टन, शिल्पगत नूतनताओं विशेषतया उपमान-प्रयोगों की दृष्टि से विशिष्ट है। पाँच काण्डों-विद्याधर काण्ड, अयोध्या काण्ड, सुन्दर काण्ड, युद्ध काण्ड एवं उत्तर काण्ड में बंटी कथा के 20 संधियों युक्त विद्याधर काण्ड में ऋषभजिन-जन्म, जिन-निष्क्रमण, वानरवंश-उत्पत्ति, रावण-चरित आदि वर्णित हैं। रामचरित का आरम्भ महाकवि ने अयोध्या काण्ड से किया है।
'पउमचरित' के राजा दशरथ की चार रानियाँ - अपराजिता, सुमित्रा, कैकेयी और सुप्रभा है। कैकेयी की भूमिका सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। अन्य रामकथा-ग्रन्थों के समान वनवास का कारण बनकर वह कथा को एक नया मोड़ ही नहीं देती प्रत्युत द्रोण की बहन के रूप में अपनी भूमिका का सफल निर्वाह करती है। उसके निवेदन पर ही द्रोणघन विशल्या को एक हजार अन्य कन्याओं के साथ लंका भेजते हैं। 'पउमचरित' में द्रोणाचल से औषधि लाये जाने का प्रसंग नहीं है, प्रत्युत् यहाँ द्रोण कौतुकमंगल नगर के राजा और विशल्या के पिता हैं। विशल्या के प्रभाव