Book Title: Apbhramsa Bharti 1994 05 06
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
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अपभ्रंश - भारती 5-6
स्नेह से व्याकुल लक्ष्मण को नरक का भागी बनना पड़ता है 32 परम्परागत मान्यताओं के कारण जैन-ग्रन्थों में भी नायक राम ही हैं, पर वे लक्ष्मण की प्रेरक शक्ति हैं 3 'पउमचरिउ ' के लक्ष्मण का वर्ण 'गौर' नहीं, 34 मरकत मणि के समान है 35 कवि स्वयंभू राम के वर्ण के संघात से लक्ष्मण का वर्ण हरा-मरकत मणि-सा चित्रित करते हैं । कथा-प्रसंगों के अतिरिक्त वे उपमान-प्रयोग में भी मौलिकता का परिचय देते हैं; उत्प्रेक्षाओं, उपमाओं की वे झड़ी-सी लगा देते हैं चाहे प्रसंग कारुणिक 36 हो या प्रणय 37 का ।
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'पउमचरिउ' एक विशाल प्रबन्ध काव्य है जिसमें कवि प्रतिभा का पूर्ण उन्मेष प्राप्त होता है। 'पउमचरिउ' अपभ्रंश साहित्य का जैन भक्तिपरक ग्रन्थ है फलतः कवि ने कथा का प्रारम्भ ऋषभ-जिन-जन्म के साथ किया है। यथाअवसर जिन भक्ति, पंच महाव्रतों, अणुव्रतों, गुणव्रतों और शिक्षाव्रतों की महत्ता का प्रतिपादन करने में भक्त कवि चूकता नहीं है । कवि काव्यसौन्दर्य - वृद्धि के लिए भी यत्र-तत्र जिन-भक्तिपरक उपमानों का प्रयोग करता है।
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सीहोरालि-समुट्ठिय कलयलु । णाइँ पढइ मुणि- सुव्वय - मङ्गलु 140
सिंहों की गर्जनाओं से उठा हुआ कलकल शब्द ऐसा लगता था मानो वह मुनिसुव्रत तीर्थंकर का मंगल पाठ पढ़ रहा है।
जं पसंत पदीसिय मुणिवर । सावय जिह तिह पणविय तरुवर । 41
- जब उन्होंने मुनि को प्रवेश करते हुए देखा तो वृक्षों ने श्रावकों की तरह उन्हें प्रणाम किया । सज्जियाइँ च हंस विमाणइँ जिणवर-भवणहो अणुहरमाणइँ (42
चारों हंस - विमान सजा दिये गये जो जिनवर - भवनों के समान थे ।
रामकथा के अधिकांश पात्र काव्य-ग्रन्थ में जिन धर्म में दीक्षित होते हैं 43 यों तो तुलसी ने भी रामचरितमानस में राम द्वारा शिवपूजा - वन्दना करवाई है किन्तु इससे पूर्व कवि स्वयम्भू
ने
पूजा-वन्दना - परम्परा का पउमचरिउ में सफलतापूर्वक निर्वाह किया है । स्वयम्भूदेव का लक्ष्य रामकथा के माध्यम से जिन-भक्ति का प्रचार एवं जैन दर्शन की सार्थकता सिद्ध करना है। इसमें वे सफल भी हुए हैं किन्तु राम कथा - परम्परा में अपने मौलिक कथा - प्रसंगों के कारण 'पउमचरिउ' उल्लेखनीय है, इसमें कोई सन्देह नहीं ।
1. पउमचरिउ, महाकवि स्वयम्भू, 21.41
2. पउमचरिउ, 69.17.2-31
3. वाल्मीकि रामायण, बालकाण्ड, 22.13; मानस, बालकाण्ड पृ. 218; अवध विलास, विश्वामित्र - यज्ञ, पृ. 131।
4. पउमचरिउ, 21.1.3।
अध्यात्म रामायण, बालकाण्ड, 5.25; रामचन्द्रिका, 2.28;