Book Title: Apbhramsa Bharti 1994 05 06
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
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भल्ला हुआ जु मारिआ बहिणि महारा कंतु । लज्जेजं तु वयंसिअहु जइ भग्गा घरु एन्तु ॥ 24
अपभ्रंश - भारती 5-6
हे बहन ! भला हुआ मेरा कंत मारा गया। यदि भागा हुआ घर आता तो मैं सखियों में लज्जित हो जाती। आशय यह है कि युद्धवीर कांत ने अन्ततोगत्वा कायरता को ही जीत लिया है।
अपने प्रिय के हाथों में विराजमान करवाल पर वीरांगना गर्व करती है और कहती है
भग्ग देक्खिवि निअय-बलु बलु पसरिअ परस्सु । उम्मिल्लइ ससि-रेह जिवँ करि करवालु पियस्सु ॥25
अपनी सेना को भागते हुए और शत्रु सेना को बढ़ते हुए देखकर मेरे प्रिय के हाथों में करवाल शशि- लेखा की तरह चमक उठती है।
एक वीरांगना का कथन है कि जहाँ शर से शर काटा जा रहा है और खड्ग छिन्न हो रहा है, वहाँ भटों की घटा के वैसे समूह में मेरा कंत मार्ग प्रकाशित करता है । यथा - जहिँ कप्पिज्जइ सरिण सरु छिज्जइ खग्गिण खग्गु । तहिँ तेहइ भड-घड-निवहि कन्तु पयासइ मग्गु ॥26
अपने कान्त के क्रोध का वर्णन वीरांगना सखी के सम्मुख करती है
कन्तु महारउ हलि सहिए निच्छड़ें रूस जासु । अत्थिहिं सत्थिहिं हत्थिहिं वि ठाउ वि फेडइ तासु ॥27
• हे सखी ! हमारा कांत निश्चय करके जिससे रुष्ट होता है उसके ठाँव तक को अस्त्रों, शस्त्रों और हाथों से भी तोड़-फोड़ देता है।
वीरांगना को दुखीजनों का उद्धार करनेवाला कान्त बड़ा अच्छा लगता है। उसका कथन है कि यदि बड़े घरों को पूछते हो तो बड़े घर वे रहे। किन्तु दुखीजनों का उद्धार करनेवाले मेरे कांत को इस कुटीर में देखो । यथा -
जइ पुच्छह घर वड्डाई तो वड्डा घर ओइ । विहलिअ-जण-अब्भुद्धरणु कंतु कुडीरइ जोड़ 28
अपने प्रिय की दानवीरता के संबंध में वीरांगना के हृदयोद्गार द्रष्टव्य हैं। यथा -
महु कंतहो वे दोसडा हेल्लि म झंखहि आलु । देन्तहो हउं पर उव्वरिअ जुज्झतहो करवालु ॥ 29
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• मेरे कांत के दो दोष हैं। हे सखी ! झूठ मत बोल। दान देते हुए केवल मैं बची हूँ और जूझते हुए करवाल | वीरांगना के उक्त कथन से स्पष्ट होता है कि उसे अपने दानवीर एवं युद्धवीर कांत पर बड़ा गर्व है । वाग्विदग्धतापूर्वक यह भाव प्रकट हुआ है।
यदि अन्य कालों में युद्ध क्षत्रियों का 'काम्य कर्म' था तो अपभ्रंश-युग में युद्ध ही क्षत्रियों का 'नित्यकर्म' बन गया था । लोकैषणा को सर्वोच्च माना गया था । 'का चिन्ता मरणे रणे' ऐसी