Book Title: Apbhramsa Bharti 1994 05 06
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
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अपभ्रंश-भारती 5-6
मयण समीर विहुय विरहाणलदिट्ठिफुलिंगणिब्भरो, दुसह फुरंत तिब्ब मह हियइ निरंतर झाल दुद्धरो । अणरइछारुछित्तु पच्चिल्लइ तज्जइ ताम दड्ढए,
इहु अच्चरिउ तुज्झ उक्कंठि सरोरूह अम्ह वड्ढए ॥120॥ उपर्युक्त विवेचन-विश्लेषण से यह स्पष्ट हो जाता है कि संदेश-रासक में यद्यपि विरह के अंतर्गत शारीरिक दशाओं का ही वर्णन अधिक हुआ है, किन्तु कवि ने उसे इतने मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया है कि वह हृदय में बहुत दूर जाकर गहरी संवेदना को जगाता है। बाह्य व्यापारों को चित्रित करने में भी संदेश-रासक की पदावली अत्यंत प्रभावशालिनी है। कवि की भावप्रेरित अनुभूति-स्पंदित वाणी सीधे अंतस्थल तक पहुंचे बिना बीच में रुकना नहीं चाहती। कारण यह है कि अ६हमाण ने सदैव स्वाभाविकता और मार्मिकता का ध्यान रखा। साधारण कवियों की भांति वे चमत्कार के लोभ में नहीं पड़े हैं। हृदय के गहरे-से-गहरे भावों को वह साधारण ढंग से व्यक्त करने में पटु हैं।
1. संदेश-रासक, सं. आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी एवं विश्वनाथ त्रिपाठी, पृ. 143 । 2. वही, पृ. 1491 3. नाट्यशास्त्र, आ. भरतमुनि, सं. बटुकनाथ उपाध्याय, अध्याय 6, कारिका-46। 4. दशरूपक, धनंजय, सं. डॉ. भोलाशंकर व्यास, पृ. 253 । 5. श्रृंगार-प्रकाश, भोज, सं. वी. राघवन्, प्रथम प्रकाश-2। 6. साहित्य दर्पण, विश्वनाथ, सं. सत्यव्रत सिंह, 3.183। 7. संस्कृत और रीतिकालीन हिन्दी काव्य में श्रृंगार-परंपरा, डॉ. दयानंद शर्मा, पृ. 11। 8. रसगंगाधर, पंडितराज जगन्नाथ, टी. नागेश भट्ट, पृ. 31-331 9. आधुनिक हिन्दी काव्य में विरह-भावना, डॉ. मधुर मालती सिंह, पृ. 6। 10. ध्वन्यालोक, आनंदवर्धन, सं. डॉ. नगेन्द्र, पृ. 1411 11. रस-सिद्धान्त-स्वरूप विश्लेषण, डॉ. आनंदप्रकाश दीक्षित, पृ. 314। 12. काव्यालंकार, रुद्रट, अध्याय 13.6। 13. भिखारीदास-ग्रंथावली-रस सारांश, सं. आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र, पद 10। 14. वही, खण्ड 2, काव्य निर्णय 4.101 15. नाट्यशास्त्र, आ. भरतमुनि, सं. बटुकनाथ उपाध्याय, अध्याय 241 16. वही, अध्याय 201| 17. श्रृंगार प्रकाश, आ. भोजराज, सं. वी. राघवन्, अध्याय 16। 18. काव्य-दर्पण, पं. रामदहिन मिश्र, पृ. 171। 19. वही