Book Title: Apbhramsa Bharti 1994 05 06
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
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अपभ्रंश-भारती 5-6
जनवरी-जुलाई-1994
हेमचन्द्र के प्राकृतव्याकरण में उद्धृत अपभ्रंश के दोहों में नारी-हृदय की धड़कनें
- डॉ. वी. डी. हेगडे
हेमचन्द्र के प्राकृतव्याकरण में उद्धृत अपभ्रंश के दोहे लोकमानस के साक्षात् फल हैं। अतः लोकसंपृक्ति उनका मूलद्रव्य है। उक्त कतिपय दोहों में नारी-हृदय की मधुर पीड़ा समायी हुई है। एक नारी अपनी सखी से कहती है - हे सखि ! अंगों से अंग नहीं मिला, अधर से अधर प्राप्त नहीं हुआ, प्रिय का मुख-कमल देखते-देखते यों ही सुख समाप्त हो गया -
अंगहि अंगु न मिलिउ हलि अहरे अहरु न पत्तु ।
पिअ जोअन्तिहे मुह-कमलु एम्वइ सुरउ समत्तु ॥' प्रोषितपतिका मुग्धा नायिका के कथन में विरह की मधुर पीड़ा का सजीव चित्रण हुआ है। वह सखी से कहती है कि प्रवास करते हुए प्रिय ने मुझे जो दिन दिये थे उन्हें गिनते हुए मेरी अंगुलियाँ नख से जर्जरित हो गईं। उक्त कथन से स्पष्ट होता है कि प्रोषितपतिका के लिए प्रियागमन की प्रतीक्षा मधुर यातना के सदृश है। नख से जर्जरित अंगुलियाँ इसकी गवाह हैं। यथा
जे महु दिण्णा दिअहडा दइएँ पवसन्तेण । ताण गणन्तिए अंगुलिउ जजरिआउ नहेण "