Book Title: Apbhramsa Bharti 1994 05 06
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
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मुख
बाहु
अपभ्रंश-भारती 5-6
संदेश-रासककार ने अपने साम्यमूलक अलंकारों के अंतर्गत इन दोनों प्रकार के अप्रस्तुतों अथवा उपमानों तथा उनकी उक्त चारों प्रकार की योजना को न्यूनाधिक रूपसे यथावश्यकता ग्रहण किया है। संदेश-रासक में आये हुए उपमानों की संक्षिप्त तालिका इस प्रकार हो सकती है - क्रमांक उपमेय
उपमान शरीरकांति
स्वर्णाभा केश
जलकल्लोल, भ्रमरावलि
अमृतस्रावीचंद्रमा, कमल नेत्र
कमल कपोल
दाडिम पुष्पसमूह
दोहरे कमलनाल स्तन
कलश, सज्जन, दुर्जन नाभि
पर्वतीय नदी का आवर्त कमर
भिड़ की कमर, मनुष्य का सुख
कदली स्तंभ पैरों की अंगुलियाँ
पद्मराग नख
स्फटिक-खंड रोम
मृणालतंतु गति
हंस गमन विरहजन्य श्यामता
राहु-ग्रहण, धूम की कालिमा। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि संदेश-रासक के कवि श्री अद्दहमाण ने रूप-वर्णन में एवं उपमानों के प्रयोग में कहीं भी स्वाभाविकता की उपेक्षा नहीं की है। परंपरा-विहित उपमानों को ग्रहण करने पर भी उन्होंने अपनी मौलिकता और सूक्ष्म निरीक्षण का पूरा उपयोग किया है। इस वर्णन में सर्वत्र उनका आग्रह एवं मनोयोग दृष्टिगत होता है। कवि ने केवल परंपरागत उपमानों को ही प्राचीन और नवीन ढंग से ही प्रस्तुत नहीं किया - नवीन उपमानों को कहीं स्वतंत्र रूप से और कहीं पर परंपरागत उपमानों के साथ ग्रहण किया है। दूसरे ये उपमान कहीं पर अकेले और कहीं पर एकसाथ समूह में प्रस्तुत किये गये हैं और अपनी विशेषताओं द्वारा केवल विषय के स्वरूप को स्पष्ट ही नहीं करते, इससे आगे कलात्मक सौन्दर्य की सृष्टि भी करते हैं, जो कि प्रत्येक सफल कवि का उद्देश्य रहा करता है। विरह-वर्णन
संदेश-रासक का मुख्य विषय विरह-वर्णन है। यह विरह-वर्णन आशाबंधकुसुमसदृशा प्रेमातुरा प्रोषितपतिका विरहिणी नायिका द्वारा पथिक के माध्यम से संदेशप्रेषण के रूप में किया गया है। विरहिणी पथिक द्वारा अपने दारुण विरह-विवरण को पति के पास पहुँचाना चाहती है जिससे द्रवित होकर वह परदेश से शीघ्र ही घर लौट आये। भारतीय साहित्य में विरहिणी
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