Book Title: Apbhramsa Bharti 1994 05 06
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
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अपभ्रंश-भारती 5-6 वंदवि नाभिनरिदसुय, रिसहेसर जिणचंदो, गाइस मास बसंत हुउ, भरहेसर नरविंदो ॥1॥
पहिलडं सरसति अरचिसु, रचिसु वसंतविलासु,
वीणु धरइ करि दाहिणि, वाहणि हंसुलउ जासु ॥1॥ ___ अतएव कहा जा सकता है कि अपभ्रंश के ये फागु-काव्य आकार में कहीं बड़े और कहीं छोटे होने पर भी उद्देश्य की पूर्णता, प्रकृति के साथ मानव-मन की भावात्मक एकता एवं उछाह को व्यंजित करने में नितान्त सक्षम तथा लोक-माधुरी से ओतप्रोत लघु प्रबन्धात्मक रचनाएँ हैं। 'फागु-काव्य का विकास लोक-मानस की भाव-भूमि पर हुआ है। रासक काव्य के समान संभवतः यह अपने आदि रूप में नृत्य-गीतपरक रहा होगा; कालावधि में यह साहित्यिक रूप धारण करता गया और इसकी संस्थापना अलंकृत-काव्य के रूप में हुई। इसमें गीति-तत्त्व की प्रधानता मिलती है परन्तु कतिपय कृतियों में काव्य-तत्त्व का भी समावेश मिलता है। अतः इनमें प्रबन्धात्मकता भी अनिवार्य रूप में विद्यमान है। वैसे यह बसंत-ऋतु का काव्य है '128 बसंत-श्री से संपन्न होने के कारण मानवीय भावों एवं प्राकृतिक छटा का मनोहारी चित्रण इस काव्य-रूप की अपनी प्रमुख विशेषता है। यही कारण है कि इनमें तत्कालीन सामान्य जनता के मुक्त एवं उल्लासपूर्ण जीवन की सुरम्य झाँकी का सहज साक्षात्कार होता है। डॉ. भोगीलाल ज. संडेसरा के शब्दों में - *14वीं शताब्दी में प्रारम्भ होकर तीन शताब्दियों तक मानवीय भावों के साथ प्रकृति का गान गाती, श्रृंगार के साथ त्याग और वैराग्य की तरंग उछालती हुई कविता इस साहित्य-प्रकार के रूप में प्रकट हुई'" निष्कर्षतः काव्य-रूप एवं विधा की दृष्टि से इन फागुकाव्यों को लघु प्रबन्धधर्मा काव्य कहा जा सकता है।
1. प्राचीन फागु-संग्रह, संपा. भो. ज. संडेसरा, अज्ञात कविकृत 'जंबूस्वामी फागु', पृ. 29। 2. 'ये फागु-काव्य मध्यकालीन समाज की रसवृत्ति के परिचायक हैं। बसंत-श्री और बसंत
क्रीड़ा ही इनका विषय है और उस पृष्ठभूमि में जैन मुनियों ने इसे नूतन मोड़ देकर अपने धर्म-प्रचार का एक साधन बनाया है। श्रृंगार के विप्रलंभ एवं संभोग दोनों पक्षों का निरूपण यहाँ द्रष्टव्य है।'
- हिन्दी के आदिकालीन रास और रासक काव्य-रूप, डॉ. त्रिलोकीनाथ 'प्रेमी', पृ. 60। 3. वही, पृ. 95। 4. रास और रासान्वयी काव्य, ना. प्र. सभा काशी, स्थूलिभद्र फागु, पृ. 143। 5. प्राचीन फागु-संग्रह, संपा. भो. ज. संडेसरा, नेमिनाथ फागु, पृ.7। 6. रास और रासान्वयी काव्य, ना. प्र. सभा काशी, वसंतविलास फागु, पृ. 2011 7. प्राचीन फागु-संग्रह, संपा. भो. ज. संडेसरा, द्वितीय नेमिनाथ फागु, पृ. 16। 8. प्राचीन फागु-संग्रह, अज्ञात कविकृत जंबुस्वामी फागु, पृ. 29।