Book Title: Apbhramsa Bharti 1994 05 06
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 36
________________ अपभ्रंश-भारती 5-6 25 13. पाहुडदोहा, 61, 62, 64,78, 94, 1911 14. वही, 38, 113,77,78,79, 14, 26-33। 15. वही, 108; दोहा क्र.45 में तो - पंचहि बाहिरु णेहडउ हलि सेहि लग्गु पियस्यु कहकर इस भावना को और भी स्पष्ट किया है। 16. तुलनार्थ देखिए - (1) कस्तूरी कुंडली बसै, मृग ढूंढे वन माहि। . __ ऐसे घटि घटि राम है, दुनिया देखे नांहि। कबीर ग्रंथावली, पृ. 297 (2) मोको कहां ढूँढे बंढे मैं तो तेरे पास में न मैं देवल ना मैं मसजिद, न काबो कैलास में। कबीर ग्रंथावली 17. पाहुडदोहा, 69 18. 8, 9, 10, 11, 14, 98 । 18. वही, 18 । 19. वही। 20. वही, 70 । 21. वही, 20 । 22. वही, 8, 58,81 । 23. वही, 20 । 24. वही, 20 । 25. संत्तवाणी संग्रह भाग 1.22 । 26. पाहुडदोहा, 135 । 27. वही, 162, 163 । 28. वही 29. वही, 97, 98 । 30. संतवाणी संग्रह, भाग 1, पृ. 62 । 31. माला फेरत जुग गया, गया न मन का फेर । कर का मनका छांडि दे, मन का मनका फेर ॥ कबीर ग्रंथावली, पृ. 45 32. जिस कारनि तट तीरथ जांही, रतन पदारथ घट ही मांहि । पढ़ि-पढ़ि पंडित वेद बखाणे, भीतरि हूती बसन न जाणे ॥ (कबीर ग्रंथावली) 33. कबीर ग्रंथावली, पृ. 389 । 34. पाहुडदोहा 92-93, 146 । 35. वही, 116 । 36. कबीरवाणी, पृ. 67 ।

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