Book Title: Apbhramsa Bharti 1994 05 06
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 37
________________ अपभ्रंश-भारती 5-6 37. यह काचा खेलन होई, जन पटतर खेले कोई । चित्त चंचल निहचल की जै, तब राम रसायन पीजै ॥ कबीर ग्रंथावली पृ. 146 38. कबीर ग्रंथावली सटीक, पृ. 149 । 39. पाहुडदोहा, 128 । 40. पाहुडदोहा, 49 । 41. वही, 141 । 42. वही, 189 । 43. कबीर ग्रंथावली, पृ. 110 । 44. वही, पृष्ठ 136, और भी देखिए पृष्ठ 110 तूं तूं करता तूं भया, मुझमें रही न हूँ। .बारी फेरी बलि गई, जित देखों तित तूं ॥ • न्यू एक्सटेंशन एरिया सदर नागपुर (महाराष्ट्र)

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