Book Title: Apbhramsa Bharti 1994 05 06
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
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अपभ्रंश-भारती 5-6
उनका शमन करते हैं एवं गरुड़ से सात सौ शक्तियोंसहित सिंहवाहिनी तथा तीन सौ शक्तियोंसहित गरुड़वाहिनी विद्या प्राप्त करते हैं।
राम मुनिवर कुलभूषण से पाँच महाव्रतों, पाँच अणुव्रतों, तीन गुणव्रतों, चार शिक्षाव्रतों का फल सुनते हैं तथा जिनपूजा और जिनाभिषेक करते हुए सैकड़ों दिगम्बर मुनियों को आहार करवाकर दीनों को दान देते हैं। उनके दण्डकारण्य में रहते हुए मुनिगुप्त एवं सुगुप्त का वहाँ आगमन होता है। प्रसन्न मुनिगण के प्रभाव से देव साढ़े तीन लाख अत्यन्त मूल्यवान रत्नों की वृष्टि करते हैं। 2 दान-ऋद्धि देख खगेश्वर जटायु को पूर्वजन्म का स्मरण हो आता है। रत्नों के प्रकाश से आलोकित उसके पंख सोने के, चोंच विद्वम की, कण्ठ नीलमणि के समान. पैर वैदूर्य मणियों के और पीठ मणियों की हो जाती है । लक्ष्मण उन मणिरत्नों से रथवर की रचना करते हैं। हजारों मणिरत्नों से रचित जंगली हाथियों से जुते उस रथ की धुरा पर लक्ष्मण और भीतर राम बैठकर धरती पर भ्रमण करते हैं।
पंचवटी-प्रसंग भी इस काव्य में भिन्न रूप में उपस्थित है। सूर्पणखा यहाँ चन्द्रनखा है जो पाताल लंका के राजा खर की (रामचरित मानस के समान बहन नहीं) पत्नी है। अपने पुत्र शम्बूक के खड्ग-प्राप्ति का काल समीप आया जान, मंगल साज सजाये वह वंशस्थल के समीप पहुँचती है, वहाँ पुत्र का कटा हुआ सिर देख प्रतिशोधभाव से भरी राम-लक्ष्मण के समीप पहुँचती है। किन्तु, उनके सौन्दर्य पर लुब्ध हो सुर-सुन्दरी का रूप धारणकर उच्च स्वर में क्रन्दन करती वह सीता का ध्यान आकृष्ट करने में सफल होती है। यहाँ लक्ष्मण चन्द्रनखा को नासा-विहीन नहीं करते प्रत्युत उसके पक्ष को चुनौती देते हैं। दीनमुख, रुदन करती चन्द्रनखा स्वयं अपने नखों से अपना वक्ष विदारित कर खर-दूषण के सम्मुख जाती है। दूषण रावण को सन्देश प्रेषितकर स्वयं युद्धरत होता है। 'पउमचरिउ' के लक्ष्मण वंशस्थल से सूर्यहास नामक खड्ग प्राप्त करते हैं। खेल-खेल में किये गये प्रहार से वंशस्थल से एक कटा सिर उछलता है जिसे देख हत्या के लिए स्वयं को धिक्कारते हुए लक्ष्मण राम से वस्तुस्थिति का ज्ञान प्राप्त करते हैं।
रामायणी कथा-क्रम अपनाते हुए भी स्वयम्भूदेव ने इस स्थल पर क्रम में परिवर्तन किया है।खर-लक्ष्मण-युद्ध के मध्य रावण युद्धस्थल में पहुँचता है और अवलोकिनी विद्या की सहायता से राम-लक्ष्मण का गुप्त संकेत (सिंहनाद) जान लेता है।" ___ 'पउमचरिउ' में राम सीता को एकाकी छोड़ लक्ष्मण की रक्षा के लिए दौड़ पड़ते हैं, जिन्हें लक्ष्मण द्वारा सीता-हरण की आशंका व्यक्तकर आश्रम की ओर लौटाया जाता है। रावण के प्रहार से निर्दलित जटायु को राम पाँच बार णमोकार मन्त्र का उच्चारण कर आठ मूलगुण देते हैं।18
रावण सीता को पुष्पक विमान पर चढ़ा लंका नगर की शोभा दिखाता है। अन्ततः उसे अशोकमालिनी बावड़ी के समीपवर्ती प्रदेश में प्रतिष्ठित कर चला जाता है। वानरों द्वारा राम की शक्ति के सम्बन्ध में शंका व्यक्त करने पर लक्ष्मण कोटि-शिला का संचालन करते हैं। स्वयं सीता को राम से अधिक लक्ष्मण की शक्ति पर विश्वास है - राम से नहीं, केवल तुम्हारे भुजयुगल से रावण का वध होगा।"