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अभ्यास-18
भूतकालिक कृदन्त
अभ्यास 1 से 17 में आप वर्तमानकाल, विधि एवं प्राज्ञा, भविष्यत्काल तथा संबंधक भूतकृदन्त (पूर्वकालिक क्रिया) एवं हेत्वर्थक कृदन्त के प्रत्ययों से परिचित हो चुके हैं । किन्तु भूतकाल की क्रियाओं के लिए अपभ्रंश में वर्तमानकाल, विधि एवं प्राज्ञा तथा भविष्यत्काल की तरह प्रत्ययों का विधान नहीं है । अतः भूतकाल का भाव प्रकट करने के लिए भूतकालिक कृदन्त का ही प्रयोग किया जाता है । अभ्यास हल करने से पूर्व 'अपभ्रंश रचना सौरभ' पाठ-41 (भूतकालिक कृदन्त) का अध्ययन करें।
'अपभ्रंश रचना सौरभ' में पुरुषवाचक सर्वनामों का प्रयोग करते हुए उदाहरणस्वरूप वाक्य नहीं दिए गए हैं। अतः इन्हें यहां समझाने का प्रयास किया गया है।
भूतकालिक कृदन्त के प्रत्यय हैं-प्र/य । प्रत्यय लगने पर क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'इ' हो जाने पर 'हस' क्रिया का रूप बनता है-हसिग्र/हसिय । भूतकालिक कृदन्त के रूप पुल्लिग सर्वनाम के साथ 'देव' के समान तथा स्त्रीलिंग सर्वनाम के साथ 'कहा' के अनुसार चलेंगे।
(i) पुल्लिग एकवचन देव/देवा/देवु/देवो → हसिग्र/हसिया/हसि उ/हसियो (ii) पुल्लिग बहुवचन देव/देवा → हसिग्र/हसिमा (iii) स्त्रीलिंग एकवचन कहा/कह → हसिया/हसिन (iv) स्त्रीलिंग बहुवचन कहा/कह/कहाउ/कहउ/कहानो/कहो → हसिया
हसिन/हसिपाउ/हसिपउ/हसिआरो/हसियो (i) मैं हँसा-यहां पुरुषवाचक सर्वनाम, पुल्लिग एकवचन का है । अत:
'हस' क्रिया का भूतकालिक कृदन्त बनाकर इसके रूप पुल्लिग में 'देव' के अनुसार एकवचन में चलाने होंगे
नोट-इस अभ्यास-18 को हल करने के लिए 'अपभ्रंश रचना सौरभ' के पाठ 41
का अध्ययन करें।
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[ अपभ्रंश अभ्यास सौरम
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