Book Title: Apbhramsa Abhyasa Saurabh
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 242
________________ si si SS 1515 जतु जंतु पत्तो मसाणए, 111 SI S Sis घुरुहुरंतसमडिय - साणए, ।।। ।।। ।। ।। 515 सडिय-पडिय-बहु-देहि-जंगले, 5151 SIT 1515 घुग्घुवंत घूवड अमंगले । -सुदंसणचरिउ 8.16.1.2 अर्थ-चलते-चलते सुदर्शन श्मशान में पहुंचा, जहाँ कुत्ते घुर्राते हुए भिड़ रहे थे । जहाँ नाना शरीरों का मांस पड़ा हुआ सड़ रहा था । जो घू-घू करते हुए घुग्घुत्रों से प्रमंगलरूप था। १ मत्तमातंग छंद लक्षण-- इसमें दो पद होते हैं (द्विपदी) । प्रत्येक चरण में अट्ठारह मात्राएं होती हैं व चरण के अन्त में जगण (151) होता है । जगण जगण 5 15 51 5S!1si sis Sissi 1151 तो दिणे छट्टि उक्किटकमसेण, दाविया छट्ठियाज्झत्ति वइसेण । जगण जगण । 5 ।।। । ।। । । । ।। ।।। । अट्ठ दो दिवह वोलीण छुडु जाय, ताम जा णाम जिणयासि सणुराय । __ -सुदंसणचरिउ 3.5.6-7 अर्थ फिर जन्म से छठे दिन उस वैश्य ने उत्कृष्ट रूप से झटपट छठी का उत्सव मनाया । जब पाठ और दो अर्थात् दस दिन व्यतीत हुए तब उस पुत्र की जिनदासी नाम की माता अनुरागसहित........ । 10. निध्यायिका छंद लक्षण-इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी) । प्रत्येक चरण में उन्नीस मात्राएं होती हैं। अपभ्रंश अभ्यास सौरम । [ 229 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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