Book Title: Apbhramsa Abhyasa Saurabh
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 251
________________ सगण सगण सगण सगरण ।। । । । । ।। इल-रक्खु समक्खू पहत्त खणे । 12 3 4 5 6 7 8910 1112 सगरण सगण सगण सगण ।। ।। 5 ।। णिरु कंपइ जंपइ सो सहसा, 1 2 345 678 9 101112 सगरण सगरण सगण सगण ।। । । । ।5।5 अहोचल्लि म खेल्लि महंतजसा । 12 3 4 5 6 7 89101112 -सुदंसणचरिउ 2.13.5-6 अर्थ-उसी समय एक चमक (घबराहट) मन में धारण करके खेत का रखवाला उसके सम्मुख प्रा पहुंचा । वह कांपता हुआ सहसा बोला-अरे चल, हे __ महा यशस्वी, खेले मत । 27. मौक्तिकदाम छंद लक्षण- इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी) । प्रत्येक चरण में चार जगरण (Is+ISI+II+II) व बारह वर्ण होते हैं । जगण जगण जगण जगण । ।। ।।। । सुदुद्धरु अंजणपव्वय काउ, जगण जगण जगण जगण । ।। ।।।।।। दिसाकरितासणु मेहरिणणाउ । जगण जगण जगण जगण ISI ISI ISI ISI सदप्पु वि वेझु ण देइ करिंदु, 238 ] [ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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