Book Title: Apbhramsa Abhyasa Saurabh
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 261
________________ अर्थ-जैसे कलाओं के संचय से चन्द्रमा और जलसमूह द्वारा जलधि सौन्दर्य और गभीरता को प्राप्त होते हैं । (घ) निम्नलिखित पद्यों के मात्रा लगाकर इनमें प्रयुक्त छन्दों के लक्षण व नाम बताइए - 1. चउ दुवार चउ गोउर-चउ-तोरण-रवणिया । चम्पय-तिलय-वउल-णारङ्ग-लबङ्ग-छण्णिया ।।। -पउमचरिउ 42.10.2 अर्थ-वह चार द्वारों, चार गोपुरों और चार तोरणों से सुन्दर थी, चम्पक, तिलक, बकुल, नारंग और लवंग वृक्षों से आच्छादित थी। 2. कुमुअ-महकाय सद्ल-जमघण्टया । रम्भ-विहि मालि-सुग्गीव अमिट्टया ।। --पउमचरिउ 66.8.10 अर्थ-कुमुद-महाकाय, सार्दूल और यमघंट, रंभ और विधि, माली और सुग्रीव एक-दूसरे से जाकर भिड़ गये। 3. लच्छिभुत्ति पभणिउ सुहि-सुमहुर-वायए । एउ सव्वु किउ सम्वुकुमारहो मायए ।। -पउमचरिउ 45.9.1 अर्थ-तब लक्ष्मीमुक्ति दूत ने अत्यन्त श्रुतिमधुर वाणी में कहा, यह सब शम्बूकुमार की मां ने किया है । देउ दियसासणं लेउ गुरुपेसणं । कुणउ हरप्रच्चणं पुरउ कयणच्चणं ।। -सुदंसणचरिउ 6.10.9-10 अर्थ-चाहे ब्राह्मण धर्म का उपदेश दो, चाहे गुरु से दीक्षा लो। चाहे हर (महादेव) की अर्चना करो और उनके आगे नाचो । 248 ] [ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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