Book Title: Apbhramsa Abhyasa Saurabh
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
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भगण भगण भगण ग ग
। । । ।। ।55 लग्गु थुणेहुँ पयत्थ - विचित्तं, 1 2 345 678 91011
मगण
मगण भगण भगण ग ग
। । । ।।।ss गाय - रणराण सुराण विचित्तं । 1 2 3 4 5 678 91011
भगण भगरण भगण ग ग ऽ ।। ।।।। 55 मोक्खपुरी - परिपालय • गत्तं, 1 2 34 5 6789 1011
भगण भगण भगण ग ग
। । ।। ।। ss सन्ति-जिणं ससि-रिणम्मल- वत्तं । 1 2 3 4 56 7 8 9 1011
-पउमचरिउ 71.11.1-2 अर्थ- उसके अनन्तर, रावण विचित्र स्तोत्र पढ़ने लगा, नागों, नरों और देवताओं
में विचित्र हे देव ! तुमने अपने शरीर से मोक्ष की सिद्धि की है, चन्द्रमा के सदृश शान्त आचरण, शान्तिनाथ, .... ।
___26 तोट्टक छंद लक्षण -- इसमें दो पद होते हैं (द्विपदी)। प्रत्येक चरण में चार सगण
(Is+is+is+lis) व बारह वर्ण होते हैं ।
सगण सगण सगण सगण ।। । । । ।। ।। अह एक्कु चमक्कु वहंतु मणे, 12 3 4 5 6 7 8910 1112
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ।
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