Book Title: Apbhramsa Abhyasa Saurabh
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

View full book text
Previous | Next

Page 249
________________ गल ऽ । । । । । । । । के वि गीसरन्ति वीर, भूधर व्व तुङ्ग धीर । sis। । । । । । । सायर व्व अप्पमाण, कुञ्जर व दिण्ण-दाण । __-पउमचरिउ 59.2.2-3 अर्थ-पहाड़ की भांति ऊंचे और धीर कितने ही योद्धा निकल पड़े । वे समुद्र की तरह अप्रमेय थे और हाथी की भांति दान देनेवाले । वणिक छन्द 24. मालती छन्द लक्षण-इसमें दो पद होते हैं (द्विपदी)। प्रत्येक चरण में दो जगण (st+s) व छः वर्ण होते हैं। जगण जगण । । । । णवेवि मुणिंदु 123 45 6 जगण जगण । ।।। भवीयणचंदु 123456 जगरण जगण जगण जगण । । । । । । । । घरम्मि छहेवि चउक्के ठवेवि । 12 3 456 12 3 456 - णायकुमारचरिउ 9.21.1-2 अर्थ -- घर आने पर उन भव्यजनों में चन्द्र के समान श्रेष्ठ मुनिराज को नमस्कार करके घर के भीतर लेजाकर खड़ा करना चाहिए । 25. दोधक छंद लक्षण-इसमें दो पद होते हैं (द्विपदी) । प्रत्येक चरण में तीन भगण (S11-+-II+II) और दो गुरु (+s) तथा 11 वर्ण होते हैं। ____ 236 ] [ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290