Book Title: Apbhramsa Abhyasa Saurabh
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 246
________________ नगण 5 5 ।। ।। ।। ।।।। हा हा गाह सुदंसण सुंदर सोमसुह । नगण ।।।। ।।।।। ।।।।।।।। सुप्रण सलोण सुलक्खण जिणमइअंगरुह । -सुदंसणचरिउ 8.41.1-2 अर्थ-हाय हाय नाथ, सुदर्शन, चन्द्रमुख, सुजन, सलोने, सुलक्षण, जिनमति के सुपुत्र ....। 17. शालभंजिका छंद लक्षण-इसमें दो पद होते हैं (द्विपदी)। प्रत्येक चरण में 24 मात्राएं होती हैं . और अन्त में लघु (1) व गुरु (5) होता है । । । । ।। । । । । । । ताव तेत्थु णिज्झाइय वावि असोय-मालिणी । ऽ । ऽ। । ।।। ।।।। । । । हेमवण्ण स-पनोहर मणहर गाई कामिणी । -पउमचरिउ 42.10.1 अर्थ-तब उसने 'अशोकमालिनी' नाम की बावड़ी देखी, सुनहले रंग से वह जैसे-सपयोधर सुन्दर कामिनी हो । 18. हेलाद्विपदी छन्द लक्षण-इसमें दो पद होते हैं (सम द्विपदी)। प्रत्येक चरण में 22 मात्राएं होती हैं और अन्त में दो गुरु (55) होते हैं। ।।। । । । ॥ ऽ।ऽ ।55 पइज करेवि जाम पहु आहवे अभङ्गो । si isi 51 SSI SISS ताम पइछु चोरु णामेण विज्जुलङ्गो । -पउमचरिउ 25.2.1 अपभ्रंश अभ्यास सौरभ ] [ 233 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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