Book Title: Apbhramsa Abhyasa Saurabh
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 241
________________ अर्थ-उसने छंद, अलंकार, निघण्टु, ज्योतिष, ग्रहों की गमन प्रवृत्तियों तथा काव्य व नाट्यशास्त्र सुने एवं समस्त प्रायुधों का भी ज्ञान प्राप्त किया। 6. उप्पहासिनी छन्द लक्षण- इसमें दो पद होते हैं (द्विपदी)। प्रत्येक चरण में सोलह मात्राएं होती हैं और अन्त में लघु-गुरु-लघु-गुरु होता है । I ISSI ISIS IS SIIS 11 SISIS कुमुपावत्त-महिन्द-मण्डला, सूरसमप्पह भाणुमण्डला । 11 SII SS ISIS 1111 SS IT ISIS रइवद्धण सङ्गामचञ्चला, दिढरह सव्वम्पिय करामला ।। -पउमचरिउ 60.6 1-2 अर्थ--कुमुदावर्त, महेन्द्रमण्डल, सूरसमप्रम, माणु-मण्डल, रतिवर्धन, संग्रामचंचल, दृढरथ, सर्वप्रिय करामल । 7. रयडा छंद लक्षण-इसमें दो पद होते हैं (द्विपदी) । प्रत्येक चरण में सोलह मात्राए होती हैं। । ।।। । । । । ।। को वि मणइ रण वि लेमि पसाहणु । । । ।। ।। ।। जाम ण भञ्जमि राहव-साहणु ॥ -पउमचरिउ 59.4.3 अर्थ-कोई बोला-मैं तब तक प्रसाधन ग्रहण नहीं करूँगा जब तक कि रावण की सेना को नष्ट नहीं करता। 8. विलासिनी छंद लक्षण-इसमें दो पद होते हैं (द्विपदी) । प्रत्येक चरण में सोलह मात्राएं होती हैं और चरण के अन्त में लघु (1) ब गुरु (s) होता है । 228 ] [ अपभ्रंश अभ्यास सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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