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'सम्मतिशास्त्र इवाऽस्मदिष्टतमाः' एवो उल्लेख शिष्य तरीके स्वीकारवा माटे पर्याप्त छे.
आ बधुं ज तेमने उपाध्यायजीना
पत्र १७मां ८५ श्लोको छे. १ - १६ पद्योमां मङ्गलाचरण छे, जे ‘श्रीपञ्चतीर्थजिनवर्णनम्' नामे कर्ता ओळखाव्युं छे. १७ - ३७मां वगडी वर्णन छे. ३८६२ वीजापुर - स्याहपुरना वर्णननां छे. तेमां ते क्षेत्रना यवन (मुस्लिम) शासकनुं नाम ‘स्याह सक्कन्दर' (सिकन्दर शाह) (४९-५०) होवानुं जाणवा मळे छे. आ स्थानिक सूबानुं नाम लागे छे. ५६ - ६२मां वांचन, स्वाध्याय, पर्युषणनां कृत्य आदिनुं निरूपण छे. ६३-७५ मां गुरुवर्णन, पत्रप्रसादी पाठववा माटे विज्ञप्ति (७६), वन्दना-क्षमा-निवेदन (७७-७८) छे. ७९-८२मां तत्रस्थ मुनिवृन्दनां नाम तथा वन्दनादिनुं, ८३मां, साथेना २ मुनिनां तथा स्थिरवास रहेल १ मुनिनुं नाम वगेरे निवेदन छे. छेल्लां २ पद्योमां सङ्घ तरफथी वन्दना तथा संवत् आदिनी नोंध छे.
पत्र १८ मां ७८ श्लोक छे. १ ९ मङ्गल, १०-३१ उदयपुरवर्णन, ३२५७ नगरवर्णन (स्याहपुर) तथा व्याख्यान - पर्वकृत्य आदिनुं निवेदन, ५८-७० गुरुवर्णन अने ७१ मां वन्दन - निवेदन छे. ७२मां गुरु साथेना श्रीपुण्यसुन्दर पण्डितने स्मरतां कवि कहे छे के जेम अमने सम्मति [ तर्क ] शास्त्र बहु गमे छे तेम आ मुनिवर पण अमने बहु इष्ट छे. आ एक नोंधपात्र उल्लेख गणाय. उपाध्यायजीना शिष्य होय तो ज सम्मतिशास्त्र गमतुं होय, एवं तारण काढीए तो ते वधु पडतुं न गणाय ७२ - ७४मां साधुगणनुं स्मरण, ७५मां साथेना २ तथा स्थिरवासी १ मुनिनुं वन्दन निवेदन, छेवटे पत्रसमापन करतां संवत्-निर्देश कर्यो छे.
आ बे विज्ञप्तिपत्रोनी नकल लींबडीना श्रीआणंदजी कल्याणजी पेढीना ज्ञानभण्डारथी प्राप्त थयेल छे.
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विद्यापुरथी मुनि पद्मानन्दे राजनगरस्थित गच्छपति (क्यांय गुरुनो नामनिर्देश जडतो नथी) पर लखेल, गद्य-पद्यमिश्रित, ५६ श्लोकप्रमाण आ पत्र छे. संवत्नो निर्देश नथी, पण १७मा शतकनो होवानुं अनुमान थाय छे. कविनी प्रतिभा पत्रमां सुपेरे झळके छे. कवि प्रौढ प्रतिभाना स्वामी होवानुं तेमणे प्रयोजेला मालायमक
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