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विहारनी दिशा निश्चित करवा विषे, अन्य वृत्तान्तो पण्डितपदधारी अन्य मुनिना पत्रथी जाणी लेवा विषे निर्देश थया छे. पोते त्रिविक्रमभट्टकृत चम्पूकाव्य भणता होवानो उल्लेख (४२) पण छे. आ पत्रनी जे. निजी सङ्ग्रहमां छे.
(३३) माण्डवीबन्दर (कच्छ) स्थित, खरतरगच्छीय पं. पुण्यधीरजी उपर विक्रमपुर (बीकानेर)थी जयकीर्ति मुनिए लखेल आ गद्यात्मक पत्र, लेखकनुं भाषा तथा व्याकरण परनुं सुन्दर प्रभुत्व सूचवी जाय छे. लेखकनो आ पांचमो पत्र छे. बन्ने मुनिवरो मित्रो हशे, गुरु-शिष्य नहि, तेवो पण भाव जणाय छे. लेखके पुण्यधीरजीना पोताने मळेल एक पत्रमां, व्याकरणविषयक अमुक भूलो पोताने लागी छे ते पत्रमा नोंधी मोकली छे. पोते किरातकाव्य भणे छे अने १५ सर्ग थई गया छे तेमज हाल अभिधानचिन्तामणि जुए छे तेनी जिकर करतां, पोताना अध्यापक पण्डित नन्दलाल व्यास माटे जे विशेषण वापरूं छे तेथी अध्यापकनी सज्जतानो तेमज लेखकना तेमना प्रति सद्भावनो अणसार मळे छे. प्रसिद्ध कवि उपा. क्षमाकल्याणजी पण माण्डवी होवानुं सूचन पण तेमना नामोल्लेखथी थयुं छे. प्रान्ते मारवाडी वाक्यो अन्यान्य साधुओए के साधुओ वती लख्यां छे. आ पत्र निजी सङ्ग्रहनो छे.
(३४) मधूकपुर (महुआ ? के महुधा ? के मऊ ? के गुजरात बहार- कोई गाम ?) स्थित भ. महीचन्द्र तथा मेरुचन्द्र पर पूषन्पुर (सूरत?)थी उदयविजयजीए लखेल आ एक सामान्य पत्र छे, जेमां परस्परना कुशलनी वात/पृच्छा होय. भाषा कठिन-पाण्डित्य प्रदर्शक छे. लेखक तपगच्छना हशे, पण भ.(भट्टारक) महीचन्द्रमेरुचन्द्र अन्य गच्छना हशे एम जणाय छे. तपगच्छमां आवा नामना कोई भट्टारक थया नथी.
पत्रसमाप्ति पछी, उ. मुनिविमले रचेल अष्टक पैकी पांच श्लोको छे, जेमां तपागच्छनी 'सागर' शाखाने माटे खण्डनात्मक लखवामां आव्युं छे. विजयसेनसूरिए पयोराशि (सागर), मन्थन कर्यु (१); 'हीर' सूरिरूपी रामना हनूमान् नन्दिविजय, तेमणे 'सागर'ना पांच ग्रन्थोने लङ्कामा देशनिकाल आप्यो (२); 'सर्वज्ञशतक नामे 'सागर' (धर्मसागर)ना विषने (ग्रन्थने) सोमशेखरे निःसार बनावी दीधुं
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