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(कोई गाम हशे ?) (के 'पाट'नो कबजो लेवा तत्पर लोको द्वारा गूढ पाटनी कोई हिल चाल विषे संकेत हशे ? ) सम्बन्धी समाचार पत्रथी मोकल्या होवानुं तथा जगत्तारणी (जैतारण) तेमज शुद्धदती ( सोझत) पण पत्रो लख्या छे तेवो उल्लेख, परिस्थिति नाजुक होवानो अणसार आपी जाय छे. लेखक आवी स्थिति साथे काम पाडवामां तथा बहार नीकळी जवामां निपुण तेमज पूज्यना विश्वासभाजन होय तेम समजाय छे. श्रीपूज्यवती यादवाधीश्वर (राजा) ने हमेशां मळवानी वात पण नोंधपात्र छे.
आ पत्रनो प्रारम्भिक भाग मळ्यो न होवाथी ते त्रुटक गणाय. आ पत्रनी जे० निजी सङ्ग्रहनी छे.
( ४९ )
अपूर्ण रूपमां ज उपलब्ध, ३८ श्लोकप्रमाण आ पत्र रूपचन्द्रमुनिए डभोक गामथी इलादुर्ग - ईडर बिराजता गुरुने ( सम्भवतः विजयदेवसूरि पर) लखेल छे. आ पण अन्य पत्रो जेवो ज सरेराश पत्र छे. आ पत्र पण सूरतना ने.वि.क. ज्ञानमन्दिरथी मळ्यो छे.
(५०)
आ पत्र मुख्यत्वे गद्यात्मक छे अने तेनो प्रारम्भभाग त्रुटित - अनुपलब्ध छे. पण ते कोई उत्तम विद्वाने लख्यो छे ते तेनुं भाषापाण्डित्य जोतां ज जणाई आवे छे. पत्र कोई गच्छपति के आचार्य उपर लखायो छे. पत्रमां 'श्रीसमुदाय' शब्द वारंवार प्रयुक्त छे, ते आचार्यना संघाडा माटे के अनुयायीगण माटे होय तेम मानी शकाय. अभय ग्रन्थालय, बीकानेरना सङ्ग्रहनो आ पत्र उ भुवनचन्द्र म. ना प्रयासथी प्राप्त थयो छे.
( ५१ )
आ पत्र अपूर्ण छे, त्रुटित छे, कोणे, क्यांथी, कोना पर, क्यां लख्यो छे ते जाणी शकातुं नथी. लेखक प्रतिभासम्पन्न होवानुं तो प्रथम पद्य ज सूचवे छे. २-११मां विविध मुनि - नामो छे ते जोतां, आ पत्र कोई तपगच्छपतिने लखायो होय ते वधु सम्भवित लागे छे. आ पत्र पण निजी सङ्ग्रहनो छे.
(५२-५३-५४)
विज्ञप्तिपत्रोना प्रत्युत्तररूपे गुरुजनो तरफथी लखवामां आवतो कृपापत्र
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