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(४) तथा अन्य अनेक अलङ्कारो जोतां सहेजे जणाय छे. १-१५मां मङ्गल, १६३९मां तथा वच्चेना गद्यांशोमां राजनगरवर्णन, ४०-४२ पद्यो तथा गद्यांश वडे विद्यापुरवर्णन, ४२-४८ मां धर्मकृत्य-निवेदन, ४९-५६ पद्यो तथा गद्यपाठ वडे गुरुगुणगान - आम पत्रनो क्रम छे. ४९-५३ आ पद्योमां प्रयुक्त अभिनव छन्दो ध्यानपात्र छे. पद्य २९मां नगरनां जिनालयोनां शिखरो परना कलशनुं वर्णन करतां कविए प्रयोजेलो शृङ्गाररसमढ्यो उत्प्रेक्षा अलङ्कार भारे चमत्कृति सरजे छे. गद्यरचनामां पण कवि कोई ग्रन्थरचना करी रह्या होय तेवा खील्या छे.
आ पत्रनी हस्तप्रतनी जे. नकल कोबा-श्रीकैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिरथी प्राप्त थयेल छे. प्रतने छेडे "इति गच्छाधीश कङ्गल (कागल) लखवानी विधि सम्पूर्ण, मु. गौतमविजयलिपीकृतम्" एवं पुष्पिकारूप लखाण छे.
(२०) आ एक सामान्य पत्र छे. आमां पर्युषण अने तेने लगतां कृत्योनो उल्लेख नथी. फक्त चोमासामा परिशिष्टपर्व- व्याख्यान थतुं होवानो निर्देश (९) मळे छे. गच्छपति समीमां विराजे छे. पत्रलेखक मुनि (के. पं.?) विद्याविजयजी सिद्धपुरना शाखापुर (परा) लालपुरथी आ पत्र पाठवे छे. १९+३ = २२ पद्योनो पत्र छे. मुनि श्रीधुरन्धरविजयजीना सङ्ग्रहमांथी ते प्राप्त थयो छे.
(२१) आ पण एक साधारण कक्षानो विज्ञप्तिपत्र छे. वाचक विजयचारित्रे रामपुर विराजता आ. श्रीविजयचन्द्रसूरिने लखेल आ पत्रमा ३३ श्लोको छे. पत्रनी प्रति अभय जैन ग्रन्थालय, बीकानेरथी उ. भुवनचन्द्रजी द्वारा मळी छे. मङ्गलाचरणमां ज हरसिद्धि, भवानी, भारती, गौरी ने संभार्यां छे ते जोतां लेखक मूळे बारोट होय तो ना नहि. रामपुरमां कान्हजी नामे सङ्घवी श्रावके ऋषभदेवचैत्य कराव्यानो उल्लेख (३) नोंधपात्र छे. विजयचन्द्रसूरि कोण ? ते शोधवानुं बाकी रहे छे. लेखक सारा विद्वान हशे तेम बहिर्लापिका (१३) वगेरे पद्यो जोतां जणाय छे. लालजी मुनि, ऋषि वृद्धि तथा खुमानऋषि जेवां नामो (१५) तथा कल्पसूत्रनी १६ वाचना (रसविधुप्रमितैः० २५) इत्यादि वर्णनना आधारे पत्रलेखक तथा आचार्यविजयचन्द्रजी लोंकागच्छना हशे तेम लागे छे. पत्रनो समय सम्भवतः १९मो शतक छे.
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