Book Title: Anusandhan 2005 09 SrNo 33
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 11
________________ अनुसन्धान ३३ जय जय मयणपहारधीर ! इय तिहुअणतारण ! तिहुअणवच्छल ! तिहुअणिक्कदुहदुरियनिवारण ! ॥१८॥ तुहमुवयारपरायणो सि उवयारपयं पुण अपुणब्भव ! भवभमणदुक्खदुहिओहमिहं जिण ! । ता भुवणत्तयवंदणिज्ज ! णिअपहमवलंबिय कुणसु सुहाई जिणिंदचंद ! विदलियसयलाहिअ ॥१९॥ अट्ठमहाभयदुट्ठकुट्ठजरपदरभगंदरअच्छिकुच्छिसुइमूलसूलपमुहाई जिणेसर ! । तुह नामक्खरसमरणेण जिययं सयलाई वि । तिमिराई विरविज्जुईइ णासंति दुहाई वि ॥२०॥ सुस्सुअसमयविहीइ भग्गभविजणभवअंतर ! परमरसायणसम ! पहाण ! तेलुक्कसुहंकर ! । वयसमयंजणअंजणेण विमलीकयलोअण ! जणगणसंथुअ ! भुवणविज्जु ! मारिसपडिबोहण ! ॥२१॥ सरणागयजणताण ! पाणसंतइसंरक्खर(ण) ! वरअद्भुत्तरसहसमाणजिणलक्खणलक्खण !। जय हयमोह हओहसोह दुहसरसंतक्खण ! तिहुअणजणआणंदकंद घण ! परमविअक्खण ! ॥२२।। तुह गुणगुणणपरायण त्थु रसणा जिणणायग ! हिययं पुण तुह झाणपुण्णमुत्तमपहसाहग !! गत्तं तुज्झ पमाण(पणाम?) भावरोमंचपसाहग- ! मि(इ)य पत्थिज्जइ देसु देव ! सासयसुहदायग ! ॥२३॥ नहि विहलं तुह पत्थणं ति वीसासवसेण उ सुहमासिज्जइ भुवणविज्ज ! निउणेण ण केण उ । इय जाणिज्जइ तहवि भूरिभत्तिब्भरभासिय हिययविजंभियमेयमेव बहु बहु भासियमिय ॥२४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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