Book Title: Anusandhan 2005 09 SrNo 33
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 95
________________ नवां प्रकाशनो गङ्गेशनिबद्धः तत्त्वचिन्तामणिः ( उपाध्यादिबाधान्तः) वाचकगुणरत्नविनिर्मिता- सुखबोधिकाटिप्पनिकासहितः सम्पादक - नगीन जी. शाह प्रकाशक - मोतीलाल बनारसीदास, दिल्ली साइझ - २४.५ x १८.५ cms. पृष्ठ ६१५, किंमत - Rs. 995 नव्यन्यायना विख्यात ग्रन्थ तत्त्वचिन्तामणि उपर वाचक गुणरत्ने रचेली अप्रकाशित बृहत् टीका सुखबोधिका टिप्पनिकानुं मारु सम्पादन हमणां ज प्रकाशित थयुं छे. आ वाचक गुणरत्न कोण ? खरतरगच्छाधीश्वर युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरिना शासनकाळमां जिनमाणिक्यसूरिना शिष्य श्रीविनयसमुद्रगणी थया; आ विनयसमुद्रगणीना शिष्य ते ज आ गुणरत्नगणी (ई.स. सोळमी शताब्दीनो उत्तरार्ध). तेमणे ज केशवमिश्रनी तर्कभाषा उपरनी गोवर्धने लखेली तर्कप्रकाशिनी टीका उपर तर्कतरंगिणी नामनी टीका नव्यन्यायनी शैलीमां रची छे. सुखबोधिका अने तर्कतरंगिणी बन्नेमां ते जेमनी पासे विद्या शीख्या हता ते मैथिल गृहस्थ पण्डितो, आदरपूर्वक नाम लई स्मरण करे छे. तर्कतरंगिणीमां ते लखे छे : श्रीमन्नारायणत्मजपुष्करमिश्रमुखादधिगम्य वाचकगुणरत्नगणिना व्याख्यातं [प्रमाणम् । सुखबोधिकाना अन्ते ते लखे छे : अतिप्रयासेन मया विनिर्मिता सुखबोधिका टिप्पनिका मुदैषा । चिन्तामणौ ग्रन्थमणौ निशम्य श्रीरामकृष्णमुखारविन्दात् ॥ अवयवप्रकरण उपरनी टीका तेमणे कृष्णदुर्ग (=किशनगढ)मां लखी हती तेम तेमणे ज अवयवप्रकरणने अन्ते जणाव्युं छे. परामर्शप्रकरणना अन्ते तेमणे लख्युं छे : इति परामर्श प्रकाशिका । वळी, केवलान्वयिप्रकरणना अन्ते पण तेमणे लख्युं छे : इति केवलान्वयि ग्रन्थप्रकाशिका । आ उपरथी जणाय छे के तेमणे टीकार्नु कामचलाउ नाम प्रकाशिका राख्युं हतुं परंतु टीका पूर्ण थये स्थिर नाम तेमणे सुखबोधिका टिप्पनिका निश्चित कर्यु, आ ज वाचक गुणरत्ने काव्यप्रकाश उपर १०,५०० श्लोकप्रमाण धरावती सारदीपिका नामनी टीकानी रचना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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