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अनुसन्धान ३३
५. अष्टसहस्री तात्पर्यविवरणम् १-२; कर्ता : उपा. यशोविजयगणि; सं. मुनि वैराग्यरतिविजय; प्र. प्रवचन प्रकाशन, पूना; ई. २००४, वि.सं. २०६०.
'आप्तमीमांसा' (समन्तभद्राचार्य) उपर विद्यानन्द स्वामी-रचित वृत्ति. उपरनी आ वृत्ति छे. नव्य न्यायनी विदग्ध अने पाण्डित्यसभर शैलीमां रचायेल आ विवरण दायकाओ पूर्वे पूज्यपाद गीतार्थ-शिरोमणि आचार्य श्रीविजयोदयसूरिजी महाराजे सम्पादित करी प्रकाशित करावेल. ग्रन्थकारना स्वहस्तलिखित आदर्शनी अनुपस्थितिमां आवा आकरग्रन्थनुं सम्पादन करवू ए कांई नानीसूनी वात तो नहोती ज. दायकाओ-पर्यन्त तेनुं आलम्बन लईने ज अभ्यासीओ चाल्या छे. अलबत्त, ते पूज्यवर्यश्रीने पूनाना भाण्डारकर शोध संस्थानमां आ विवरणनी कर्ता द्वारा लखायेल प्रति होवानी जाण तो हती ज. परन्तु ते समये ते प्रति मेळववानुं तेओ माटे अशक्य बन्युं हतुं.
ए प्रतिनी फोटोप्रति, ते पूज्यपुरुषना ज समुदायवर्ती एक श्रुतरसिक आचार्यश्रीने प्राप्त थई, अने तेमना द्वारा ते पहोंची प्रस्तुत आवृत्तिना सम्पादक मुनि पासे. तेओए तेना आलम्बने आ महाग्रन्थनुं अद्यतन पद्धतिथी सम्पादन कर्यु छे, अने अनेक परिशिष्टादिथी समृद्ध एवा आ ग्रन्थ, सुन्दर प्रकाशन कराव्युं छे, जे अभ्यासी जनो माटे खूब उपयोगी बनी रहे तेम छे.
६. श्रीसूर्यसहस्रनामसङ्ग्रहत्रयम्; सं. आ. धर्मधुरन्धरसूरि; प्र. जैन विद्या शोध संस्थान, ओस्तरा (जोधपुर); ई. २००४, वि.सं. २०६०
उपाध्याय भानुचन्द्रगणिकृत सूर्यसहस्रनाम-टीका, हेमविजय गणिकृत तेमज आचार्य जिनसेनकृत सूर्यसहस्रनामो, एम ३ रचनाओगें हस्तप्रतोना आधारे सम्पादन आ ग्रन्थमा थयुं छे. उपयोगी प्रकाशन.
७. गूर्जर साहित्यसंग्रह (यशोवाणी); कर्ता : उपाध्याय श्रीयशोविजयजी; सं. पं. भद्रंकरविजयजी तथा मो.द. देशाई; पुनः सम्पादक : आ. श्री प्रद्युम्नसूरि. प्र. श्रुतज्ञान प्रसारक सभा-अमदावाद; ई. २००५, सं. २०६१
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