Book Title: Anusandhan 2005 09 SrNo 33
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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September-2005
89
पण रसप्रद छे :
चारणा यं प्रशंसन्ति, यं प्रशंसन्ति मद्यपाः ।
बन्धुक्यो यं प्रशंसन्ति तमाहुः पुरुषाधमम् ॥ (पृ. ४८) 'जेनी प्रशंसा भाटचारण, दारूडिया के वेश्याओ करती होय ते माणसने नीच समजवो.'
__ 'ध्वजान्तो धर्मः, गजान्ता लक्ष्मीः' (पृ. ५४) धर्ममां छेल्ली वस्तु ध्वज छे, लक्ष्मी (संपत्ति)मां छेल्ली वस्तु हाथी छे.
'पाण्योरुपकृति सत्त्वं, स्त्रियो भग्नशुनो बलम्' (पृ. ६५) - हाथोनो उपकार, स्त्रीनुं सत्त्व अने हाडका भांगेल कूतरानुं बल जोवानां होय.
मध्यकालीन साहित्यना प्रखर विद्वान, आन्तरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त विद्यापुरुष श्री हरिवल्लभ भायाणीना विद्याव्यासंगनो परिचयात्मक आलेख श्री हसु याज्ञिक जेवा अधिकारी जनना हाथे लखायेलो आ अंकमां वांची मन महोरी ऊठ्यु. भायाणी साहेबना प्रदाननी विशिष्टता, मूल्यवत्ता, मौलिकता आ आलेखमां सारी पेठे ऊपसी आवी छे. सम्पादकश्रीने विनंति करवानुं मन थाय छे के भारतीय विद्याना, तेमां ये जैनविद्याना क्षेत्रे चिरंजीवी कार्य करी गयेला पुरोगामी विद्वज्जनो-गुरुजनोना कार्यनो परिचय करावता आलेखो अधिकारी विद्वानोना हस्ते लखावी 'अनुसन्धान'मां आपो.
C/o. जैन देरासर, नानी खाखर-३७०४३३ (जि. कच्छ, गुजरात)
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