Book Title: Anusandhan 2005 09 SrNo 33
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 35
________________ 30 अनुसन्धान ३३ ११९ मा पद्यथी समाचारवर्णन थाय छे. पन्नवणा सूत्र, जीवाभिगमसूत्र वगेरे आगमशास्त्रो पर व्याख्यान चाली रह्यां होवाना (१२९-३०), तथा पाणिनिव्याकरण-महाभाष्य, सिद्धहेमव्याकरण तथा अनुभूतिस्वरूपाचार्यना ग्रन्थोनुं अध्ययन शिष्योने चालतुं होवाना (१३१) तेमज साहित्यग्रन्थोनो तथा नयवादनो अभ्यास चालतो होवाना (१३२) समाचार मुख्य छे. योगोद्वहन तथा उपधाननी क्रियाओना (१३३), स्नात्रना तथा अष्टाह्निका महोत्सवोना (१३४-३५) तथा पर्युषणापर्वना पण समाचार लख्या छे. चैत्यप्रवाडी (१४१-४६)नी पण विगते नोंध छे. १४७मां वार्षिक प्रतिक्रमणनी तथा खमतखामणांनी वात थई छे. १४८ थी पारणानुं वर्णन थयुं छे. धनजी श्रावके स्थानिक तपस्वीओनां पारणांनो अने कल्लूश्रावके देशावरना आराधकोनां पारणांनो लाभ लीधो छे (१४९). १५१ थी १५६ मां भोजनना मीठां पक्वान्नोनुं रोचक वर्णन थयुं छे. तेमां पण 'जलेबी' नामनी परदेशी मीठाईनुं वर्णन अद्भुत छे : "साकरघीथी मिश्रित जलेबीनां त्रण वलयो ते त्रण रेखाओथी वीटायेल ह्रींकाररूप बीजमन्त्र-समान दीसे छे. ह्रींकारनो प्रयोग यन्त्रोमां पिशाचादि तत्त्वोनो नाश करवा माटे थाय छे तेम आनो प्रयोग क्षुधा नामक पिशाचीना नाश माटे छे," आम वर्णवीने कवि पोतानी प्रतिभानो नवलो चमकारो देखाडे छे. पद्य १५५मां 'पीरस' क्रिया माटे 'परीप्सितं'नो प्रयोग ए जैन संस्कृतनी आगवी लाक्षणिकता दर्शावतो प्रयोग छे. आ पछीना श्लोकोमा गुरुवर्णन छे, अने अन्तिम बे पद्योमा उपसंहार थयो छे. कुल श्लोको १९० छे, केमके १५३ मा श्लोकना बे पाठ छे. तेने जो गणनामां न लईए तो १८९ श्लोको गणाय तेम छे. सेवालेखनु समग्र वाचन करतां ते एक सरस अने समर्थ काव्यरचना होवानुं प्रतीत थया विना रहेतुं नथी. कर्ता कविए ठेरठेर पोतानी चमत्कृतिजनक कविप्रतिभा पाथरी छे, तेवं आ अशुद्ध वाचना वांचतां पण स्फुटपणे समजाय छे. जो आनी शद्ध वाचना मळे तो तो केवी मजा पडी जाय ! अस्त. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102