Book Title: Anusandhan 2005 09 SrNo 33
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 79
________________ 74 अनुसन्धान ३३ ट्रंक नोंध (१) भद्रेश्वरमा उपलब्ध बे गुरुमूर्तिओ भद्रेश्वर (कच्छ)ना जैन मन्दिरना पुनरुद्धार-कार्य दरम्यान पायानुं खोदकाम करतां मळी आवेल खण्डित शिल्पावशेषोमां बे गुरुमूर्तिओ पण मळी छे. बन्ने खण्डित छे : एकना हाथ-पग तूटेला छे, तो बीजी- मस्तक ज नथी. विधर्मी मूर्तिभंजको, ज आ कृत्य होवानुं प्रथम दृष्टिए ज समजी शकाय छे. प्रथम मूर्ति नागेन्द्रगच्छना आचार्य सोमप्रभसूरिनी छे. बाजठ ऊपर, एक पग नीचे लटकती मुद्रामां बेठेली आ गुरुमूर्तिनुं मुखारविन्द सौम्य अने शान्त मुद्राथी अंकित छे. खण्डित एवा डाबा पगनी नीचे ठवणी ऊपर पोथी अने तेनी समीपे बेठेल रजोहरणान्वित साधु-शिष्य पण जोवा मळे छे. प्रतिमानी पाटली परनो लेख आ प्रमाणे उकले छे : ___ "सं० १३३३ श्रीनागेंद्रगच्छे श्रीसोमप्रभसूरयः।" 'कुमारपाल प्रतिबोध वगेरेना प्रणेता सोमप्रभाचार्य करतां आ आचार्य जुदा छे; आशरे एक सैकानो ते बनेमां फेर छे. (टाईटल-१ परनुं चित्र जुओ). बीजी मूर्ति, मात्र धड छे, मस्तकविहोणुं. तेमां बे हाथ तथा बे पग अखण्ड छे. बाजठ पर बेठेल आकृतिमां जमणो पग नीचे लटकतो छे, अने डाबा हाथमा माळा छे. (जुओ टाईटल-४ परनुं चित्र). पलांठीनो लेख आ प्रमाणे वंचाय छे : __"संवत् १३३१ वर्षे वैशाखाद्ये श्रीभद्रेश्वरे देवश्रीमहावीरचैत्ये पं. वदनचंद्रमूर्तिः । शिष्येण जयचंद्रेण कारापिता ॥" - आ लेखथी एक ऐतिहासिक तथ्य ए जाणी शकाय छे के १४मा शतकमां पण, भद्रेश्वरमां, महावीरस्वामी- ज चैत्य हतुं, पार्श्वनाथ, नहि. आ तथ्य भद्रेश्वर तीर्थना इतिहास विषेनी अमुक मान्यताओ- धरमूळनुं परिवर्तन करावे तेवू छे. __ - शी. For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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