Book Title: Anusandhan 2005 09 SrNo 33
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 90
________________ September-2005 85 ४५४ जगदीस रे जगदीसरो ४६२ सुरनरि दामली सुरनरिंदा मली वास आ उपरांत 'वरगडवा गाय' (क. ३११), विहवलां (क.५२) शशि त(ठ)इ (२०८) जेवां स्थानो विचार मागे छे. ४६५ वाल विहंगावलोकन ३१-३२ उपा. भुवनचन्द्र अनु० ३१ ना प्रारम्भे बे संस्कृत निबन्धो प्रसिद्ध थया छे. वि. नेमिसूरीश्वरजी अने तेमनी शिष्य मंडळीए शास्त्र-साहित्यना क्षेत्रे सारं खेडाण करेलुं. अनेक नवीन कृतिओनुं सर्जन अने प्रकाशन तेमना द्वारा थयेटु. अद्यावधि अप्रगट रहेली बे रचनाओ श्री शीलचन्द्रसूरि द्वारा प्रकाशित थाय छे ते आनन्ददायक घटना छे. 'मूर्तिमन्तव्यमीमांसा'मां विजयोदयसूरिजीए मूर्ति विशे नवा ज दृष्टिकोणथी चर्चा करी छे. भारतीयेतर धर्मो अने प्रजाओना सन्दर्भमां जैन मुनि द्वारा मूर्ति-प्रतिमा विषयक आवी विचारणा कदाच आमां ज पहेली वार थई हशे. समये समये प्रसार पामता साहित्यशैली-विचारना माध्यमे धर्मोपदेश-तत्त्वचिन्तन- कार्य करता रहेQ एवी श्रमण संघनी परम्परा आचार्यश्रीए आगळ धपावी छे ए जोई शकाय छे.. 'नेमिनाथादि स्तोत्रत्रय'नां सम्पादके ते ते कृतिना कर्ताओ विशे ऐतिहासिक विगतो जे रीते एकत्र करीने आपी छे ते रीत अनु०मां प्रगट थती सर्व कृतिओना सम्पादक-संशोधकोए पण अनुसरवा जेवी छे. बेशक, आ माटे 'जैन गुर्जर कविओ', जैन संस्कृत साहित्यनो इतिहास', 'जैन परंपरानो इतिहास''पट्टावली समुच्चय' जेवा सन्दर्भग्रन्थोनो उपयोग करवो पडे. 'नेमिजिन स्तोत्र'मां श्लो. २, च. ८मां एक अक्षर खूटे छे. 'शङ्कि' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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