Book Title: Anusandhan 2005 09 SrNo 33
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 87
________________ 82 अनुसन्धान ३३ पुण्य करो जगि जीवन ए, पुण्यई ए पुण्यइं मंगलं होइ तो, पुण्यइं घरी मणि डाबडा ए... कडी २४० आंकणी ज छे, तेने क्रमांक आपवो न जोईए । पृ. ५७ कडी ४४१ मां बने चरणना प्रास मळता नथी, त्यां एक पंक्ति छूटी गई लागे छे. अने तेथी ज क. ४४३ मां एक ज चरण छपायुं छे. कडी ४४७ आ रीते वांचवी जोइए - चंपा सन्ति रे सुरा, मिलीया ते अणवेसरा, सुरवरा अवधि जाणी आवीआ रे... पृ. ६०. क. ४९३ आ रीते होवा सम्भव भाई हमेथी तुं नीकी, वपुरी भाई... जस घरि जोईई सुखमंगल वासो, सुणवो तेणइ वासुपूज्य पुण्यप्रकाशो; भूलभरेला वाचनना कारणे शब्दोमां गरबड़ सारा प्रमाणमां छे.शक्य शुद्ध पाठ साथेनी एक यादी - कडी अशुद्ध सूचित विवाहारी विवहारी १८ सची विबुद्धि सचीवि बुद्धि सो रीए सारी ए (ढाळनुं बंधारण लक्ष्यमां लीधुं होत तो शक्य शुद्ध पाठनी कल्पना सहेलाईथी थई शकत.) मिथ्यामतिउ वरं मिथ्यामति उपरंत तनरोगो न रोगो जीवन ही जीव नही खेतर खेत रे लीलापान लालापान ४० ४३ - ४४ ४५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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