Book Title: Anusandhan 2005 09 SrNo 33
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
View full book text
________________
September-2005
राजवल्लभ राग ॥
दिनदिन वाधइ दीपतु ए, शांतिकुअर गुणवंत ।
सकल कला मुखचंदलु रे, त्रिभुवन मन मोहंत ॥७॥ यौवन पहुता राया तणी रे, परणी कुमरी जाम । राजवल्लभ भय (मय ? ) दीपतु, मंडलीक थया ताम ॥८॥
राग गुडी ॥
एणी परि राज करंता सीमाढा सवे । सेवक थइ आवी मिल्या ए ॥ ९ ॥
सुखीय थया तव लोक, तस्कर परचक्र । उपद्रव तेहना सवि टल्या ए ॥
पुरव पुण्यप्रमाण आयुधशालाइ । परदलना मद मोदनु ( मोडतु ? ) ए ॥ चक्र उपन्नं सार उगशेरी दिनकार । सहसकिरण जस छोरनु ए ॥१०॥
राग देशाख ॥
चक्र लेइनि चालिआ तव षटखंड जीत्या (जीत) चक्रवर्ति थया पांचमा, प्रभु त्रिजग वदीत ॥११॥ वैताढवासी जे नरवरुं वलता ते मिलिया । देसा खयरी विद्याधरा ते सवि पाच्छा वलया ॥१२॥ विजय करी घरि आविआ बंदी करई जइकार । वधावइ वरकामिनी बोलइ मंगल च्यार || १३ || पंच विषय सुख भोगवि सोवनवन तनु चंग | गजपुरि नयरि वसंत केदारो कउ रागउग ||१४||
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
65
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102