Book Title: Anusandhan 2005 09 SrNo 33
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 31
________________ 26 अनुसन्धान ३३ [ छन्दः त्रोटक: ] कलनालिकनातुल-तप्प-हलं लचनीकल-चालु-यसप्पसलं । ललनाचन-कीत-कुनं लुचिलं चिनलाचमहं समलामि चिलं ॥८॥ ॥ इति चौलिकापैशाचिकीभाषा || [ छन्दः द्विपदी ] सासयसुक्खनिहाणं नाह ! न दिठो(ट्ठो) जेण तुह । पुण्यविहूणो जाण निप्प(प्फ)लजमु(म्मु) तिह नरपसुह ॥९॥ निम्मल तुह मुहचंद्रु जे पहु ! पिक्खई(इ) पससिरई । ईय निरुवमआणंदु तिह मन सांमी विफू(प्फु)रई ॥१०॥ || इत्यपभ्रंसि( शे) ॥ हारी(रि)हार-हरहास-कुंद-सुंदर देहभय (मय !) केवलकमलाकेलिनी(नि)लय ! मंजुलगुणगणमय ! । कमलारुणकरचरण ! भरधरणधवलबल ! सिद्धिरमणीसंगमवी(वि)लासलालस ! मलमवदल ॥११॥ भवदव-नवजलवाह ! विमलमंगल-कुलमंदिर ! वामकाम-कलकेलिहरण-हर ! वरगुणबंधुर ! | मंदिरगीर(मंदरगिरि)-गुरुसार ! सबलकर-भु(भू)रुहकुंजर ! देहि महोदयमेव देव ! मम भुरुहकुंजर(?) ॥१२॥ ॥ इति समसंस्कृतभाषा | [ छन्दः घत्ता ] इति जगदभिनन्दन ! जनहदि नन्दन ! चन्द्रप्रभुजिनचन्द्रवर ! घट(ड्)भाषाभिष्टुत ! मम मङ्गलयुत ! सिद्धिसुखानि वी(वि)भो ! वितर ॥१३॥ ॥ इति श्रीषड्भाषाबद्ध-चन्द्रप्रभस्तवमिदम् ॥ लि. श्रीगौडलनगरे ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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