Book Title: Anusandhan 2005 09 SrNo 33
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 18
________________ September-2005 और दीक्षा नाम था - मुक्तिशील । दीक्षानन्दी के अनुसार इनकी दीक्षा १८८३ में सम्भव है । गच्छनायक श्री जिनहर्षसूरि का सम्वत् १८९२ में स्वर्गवास हो जाने पर मिगसर वदी ११ सोमवार १८९२ में मण्डोवर दुर्ग में इनका पट्टाभिषेक हुआ । यह महोत्सव जोधपुर नरेश मानसिंहजीने किया था, और उस महोत्सव के समय ५०० यतिजनों की उपस्थिति थी । यही से खरतरगच्छ की दसवीं शाखा का उद्भव हुआ । मण्डोवर में गद्दी पर बैठने के कारण यह शाखा मण्डोवरी शाखा कहलाई । इधर यतिजनों में विचार-भेद होने के कारण बीकानेर नरेश के आग्रह पर जिनसौभाग्यसूरि गद्दी पर बैठे । श्री जिनमहेन्द्रसूरि के उपदेश से जैसलमेर निवासी बाफणा गोत्रीय शाह बहादरमल, सवाईराम, मगनीराम, जौंरावरमल, प्रतापमल, दानमल आदि परिवार ने शत्रुजय तीर्थ का यात्रीसंघ निकाला था । इस संघ में ११ श्रीपूज्य, २१०० साधु-यतिगण सम्मिलित थे । इस संघ में सुरक्षा की दृष्टि से चार तोपें, चार हजार घुड़-सवार, चार हाथी, इक्यावन म्याना, सौ रथ, चार सौ गाड़ियाँ, पन्द्रह सौ ऊँट साथ में थे । इसमें अंग्रेजों की और से, कोटा महारावजी, जोधपुर नरेश, जैसलमेर के रावलजी और टोंक के नवाब आदि की ओर से सुरक्षा व्यवस्था थी । इस यात्री संघ में उस समय १३,००,०००/- रू. व्यय हुए थे । यही बाफणा परिवार पटवों के नाम से प्रसिद्ध है और इन्हीं के वंशजों ने उदयपुर, रतलाम, इन्दौर, कोटा आदि स्थानों में निवास किया था और राजमान्य हुए थे । इनके द्वारा निर्मित कलापूर्ण एवं दर्शनीय पाँच हवेलियाँ जैसलमेर में आज भी पटवों की हवेलियों के नाम से प्रसिद्ध है, और अमरसागर (जैसलमेर) के दोनों मंदिर इसी पटवी परिवार द्वारा निर्मित है । इसी पटवा परिवार ने लगभग ३६० स्थानों पर अपनी गद्दियाँ स्थापित की थी और गृहदेरासर और दादाबाड़ियाँ भी बनाई थी । इन्हीं के वंशजों में सर सिरहमलजी बाफणा इन्दौर के दीवान थे, श्री चाँदमलजी बाफणा रतलाम के नगरसेठ थे और दीवान बहादुर सेठ केसरीसिंहजी कोटा के राज्यमान्य थे । उदयपुर में भी यह १. म० विनयसागरः खरतरगच्छ का इतिहास, पृ. सं. २५२-२५३. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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