Book Title: Anusandhan 2005 09 SrNo 33
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 26
________________ September-2005 21 प्रतिपरिचय : वढवाणना ज्ञानभण्डारनी प्रतिनी झेरोक्ष नकल परथी आ कृतिनुं सम्पादन कर्यु छे. कुल २ (बे) पत्रो छे. अक्षरो सुवाच्य तथा सुन्दर छे. लेखनमां थोडी अशुद्धिओ रही गई छे. १२ मा पद्यमां छेल्लो शब्द भुरुहकुंजर छे तेना स्थाने बीजो कोई शब्द होवो जोईए. लेखनदोषथी भूल रही गई जणाय छे. प्रतिनुं लेखन गोंडलनगरमां थयुं छे. ___ (३) श्रीरामविजयजीकृत - विविधनामगुम्फित - श्रीजिनस्तवना आ स्तवनामां जिनेश्वरभगवन्तनां जुदां जुदां ५२ (बावन) नामोथी स्तुति करवामां आवी छे. भाषा हिन्दी छे. शैली मधुर तथा भाववाही छे. कुल ७ कडी छे. कर्तानो उल्लेख अन्तिम कडीमां रांम एवा शब्दथी को छे, तेना उपरथी पं. सुमतिविजयजी कविना शिष्य पं. श्रीरामविजयजी होय तेवू अनुमान थई शके. वढवाणना ज्ञानभण्डारनी प्रतिनी झेरोक्ष नकल परथी आ रचना सम्पादित थई छे. कुल पत्रो २ (बे) छे. बीजा पत्रमा षड्भाषाबद्ध श्रीचन्द्रप्रभस्तव छे. अक्षरो सुन्दर छे. तेनुं लेखन गोंडलनगरमां थयुं छे, तेवू प्रान्ते लखेल पुष्पिकाथी जणाय छे. लेखनकाळ १८मो सैको होवानुं अनुमान थाय छे. (१) पञ्चजिनस्तोत्राणि श्री आदिनाथस्तोत्रम् जय जयपईव ! कुंतलकलाव-विलसंतबहुलकज्जलसहाव ! । कलहूयकंति ! मरुदेवि-नाभि-निवतणय ! रिसहवसहंक ! सामि ! ॥१॥ धण-मिहुण-तियस-नरनाह-देव-निववयरजंघ-मिहुणे-स चेव । सोहम्म-विज्ज-अच्चुय-चक्कि-सव्वट्ठसिद्धि-अवयरी(रि)अ इत्थि ॥२॥ आसाढबहुल चवीउ चउत्थि, कसिणट्ठमि जायउ मास चित्ति । इक्खागु भूमि नयरी विणीय, धणु पंचसय तिहि तणु पणीय ॥३॥ चित्तट्ठमि गिन्हइ सामि दिक्ख, चउ सहस समन्निय कसिण पक्खि । इग्यारसि बहुली फग्गुणस्स, संपज्जइ केवलनाण तस्स ॥४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102