Book Title: Anusandhan 2005 09 SrNo 33
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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अनुसन्धान ३३ लाभ विशेष हुंवो, सु आवता चोमासारो आदेश ईणांने ही लीखावसी । आगे तो सारी(थारी?) मरजादा । उपासरारो हक सारो उठ गयो थो सो ईणांने मेलणासुं सारी वातरी मरजादरी वधोतर हुई । पंडित है, पालिखेत्र लायक है, जीणसु पालीखेत्र में तो वरस दोय तीन अठे ईणांनै ही रखायां खेत्र सुधरसी ने घणा जीव धरम पांमसी, वडो लाभ उपजसी । । लीखतु नाबरीया भगवानदास संतोकचंद री वंदणा वर १०८ अवधारसी
घणा मानसुं | ल ॥ परताबचंद ........ .... रा वंदणा बंचावसी १०८ । ला सा. अमीचंद साकरचंद नी वंदणा वार १०८ अवधारसी घणा
बहुमानथी द० लखमीचंद । लखतु गोलेछा भेरोंदास रखबचंद रा वंदणा १०८ वंचीओ धरम सनेह
रखावसी । लीखतु कटारीया सेरमल उमेदमलरी वंदणा १०८ वार अवधारसी । लीखतु कटारीया जेठमल फतहमलरी वंदणा १०८ वार वंचावसी धरम
सनेह रखावसी । लीखतु संघवी भीवराज नवलमल अर संघवी समस्तकी वंदणा १०८
अवधारसीजी घणा मान स द० नवलमल रा छ: ..... | लीखतु ........... | लीखतु लालचन्द हरकचन्द हलावार की वंदणा १०८ वार अवधारसी । लीखतु संतोकचन्द .......... नथमल गुलेछा री वंदणा १०८ वार अवधारसी । लीखतु भंणसाली रूपचन्द रखबदास री वंदणा १०८ वार अवधारसी | लीखतु पारसचन्द सूरचन्द सुकलचन्द री ........... वंदणा १०८ वार
अवधारसी । लीखतु ...... ...... लालचन्द मोतीचन्दरी वंदणा १०८ वार अवधारसी । लीखतु .................... वंदणा १०८ वार अवधारसी ..
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