Book Title: Anusandhan 2005 09 SrNo 33 Author(s): Shilchandrasuri Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad View full book textPage 9
________________ तह वि इमं मम पत्थणाइ जुज्जइ अपुणब्भवि धम्मसमुस्सिअ - सामिदासभावो बलवं भुवि ॥५॥ जय भयभंजण पासणाह ! तिहुअणमणरंजण ! जण जणवंछियकप्परुक्ख ! विगलियकम्मंजण ! | जय जिण ! दप्पयदप्पसप्पमाहप्पपभंजण ! परमसमत्तनिहाण ! झाणकयकलिमलगंजण ! ||६|| परिपेरंतफुरंतविज्जुभीसणभरि - अंबरि । घणगज्जियकयतट्टणट्ठहरिगयकयडंबरि । मुसलपमाणयमुक्तमेहजलधारसुपीवरि तुज्झ खमा न हु पंकिलावि चंचलकमठासुरि ॥७॥ जय णयसुरवरवरकिरीडमणिचुंबियणहयल ! फणिफणमणिसंकंतकंतिकिम्मीरियणहयल ! अतुलसजलजलवाहसंगिअंजणगिरिमेहलनववेरुलियकरप्परोह ! फलिणीदलसामल ! ॥८॥ तुह आणाइ पिसाय भूअ अइकूर महग्गहसाइणि डाइणि डंबराइ णासइ गहविग्गह | तिहुअणजण आराहिआण भुवणत्तयसुप्पह ! तुह नामं चिय परममंतवरकज्जकरं मम (मह) ॥९॥ जे अडवीसु अडंति जंति गहणे पहलुंटणसंकप्पियणियतेणवित्तिपउरा चोरा जिण ! । ते पोरव्व ण तुज्झ णाममंतक्खरसमरणक[ण]परायणमाणसाण भयया भयभंजण ! ॥१०॥ पणवपुरस्सरकज्जसज्जलज्जानीउत्तर अरिहं चिय सिरिपासणाहणामक्खरसइपर । असुरगरुलगंधव्वजक्खरक्खसवरकिंनर नागाइसु अविलंघियाण अइरा होहिसि णर ! ॥ ११ ॥ Jain Education International अनुसन्धान ३३ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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