Book Title: Anusandhan 2005 09 SrNo 33
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 12
________________ September-2005 तुह सरणागयवच्छलस्स मह उवरि पियामह ! जुग्गाजुग्गविचिंतणं पि सुविलंबसहं कर(कह) । अहमिह पुण जाणामि जुग्गसंगय जुग्गं चिय अप्पाणं तुह पायमूलसुसरणमुवलंबिय ॥२५॥ किमु वयघोरपरक्कमेहिं कयकायकिलेसिहं जोगब्भासनिवासपासजंतियणियलेसिहि । जइ भव्वा ! भवभूअभीइभीया सिवमिच्छह ता संखेसरपासणाहणामं चिय समरह ॥२६|| घणदुरियाई जिणाई मुज्झ सिग्धं णासंति हु अणिमाइयवरअट्ठसिद्धिबुद्धी विलसंति हु । सिरिसंखेसरपासणाहसेवासुपसाइण ता किं परसुरसेवणेण इय चिंतिसु भवियण ! ॥२७॥ मुज्झ मणोरहपत्थअत्थकप्पद्रुम ! सामिय ! । मा अवहीरइ दासमिय(मेय) भासइ सिर नामिय । सिरि संखेसरपासणाह ! भवदुहभरमोअण ! सुण विन्नत्तिरहस्स तुट्ठिसुपसायपलोअण ! ॥२८|| तवगणगुरुसिरिविजयदेवसूरीसर ! वरगुणपट्टपहायरविजयसिंहसूरिंद पसाइण । इअ थुणिओ सिरिजीतविजयबुहधम्मसहोअरसिरिनयविजयमुणिंदसीसजसविजयसुहंकर ॥२९॥ इति श्रीशद्धेश्वरपार्श्वजिनस्तुतिः । गणिजसविजयकृता । पं. नयविजयगणिना लिखिता ॥ C/o. समृद्धि एपार्टमेन्ट, 'चन्दन'नी पाछळ, हाई-वे, डीसा-३८५५३५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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