Book Title: Anusandhan 2003 07 SrNo 25 Author(s): Shilchandrasuri Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad View full book textPage 7
________________ अनुसंधान-२५ अद्भुत स्वरूप वर्णवे छे. जेमां अध्यात्मरसिकोने खूब ज रस पडे तेवू छे. पछीना श्लोकोमा अ थी लईने ह सुधीना वर्णो उपर चिन्तन छे. अ थी लईने क्ष सुधीना वर्णोना माध्यमथी थतां जापने तान्त्रिको अक्षमाळा कहे छे. आ रचनामां ॐ नमः सिद्धं' थी क्ष सुधीना ५६' वर्णोने ५६ दिक्कुमारिका साथे सरखाव्या छे. (श्लोक ४५). अरिहन्त परमात्मा शब्द ब्रह्मस्वरूप छे. एमनुं सर्वप्रथम सूतिकाकर्म ५६ दिक्कुमारी ज करे छे. इन्द्रनो अधिकार पण पछीना क्रमे छे. आ घटना कोक वैश्विक रहस्य तरफ आंगळी चीधे छे. सिद्धमातृकाने विश्वसंरचना साथे मूळभूत गूढ सम्बन्ध छे, ए वात आ रचना उपरथी समजाय छे. बाकी आनुं हार्द तो कोक गुरुगमप्राप्त साधक ज समजावी शके. 'महावीरनुं निशाळगरj' नामथी मळती प्राचीन हस्तप्रतोमां 'भले मिडी'थी लइने सम्पूर्ण वर्णमातृकाना आध्यात्मिक अर्थो प्रतीकोथी प्रगट करवामां आव्या छे. आजथी ६०/७० वर्ष पहेलां राजस्थाननी पोशाळोमां आ रीते ज बाराखडी (वर्णमाळा) भणाववामां आवती हती, एम जूना माणसो कहे छे.. ___ एवी अनुश्रुति छे के प्रभु महावीर निशाळे बेठा त्यारे इन्द्रे जे प्रश्नो कर्या तेना जे उत्तर ते ज आ निशाळगरणुं छे. तेमां प्रभुए वर्णमातृकानां रहस्यो प्रगट कर्यां छे. ___ आ सिद्धमातृका प्रकरण अने निशाळगरणुं बनेमां प्रतिपादनहुँ जबरदस्त साम्य छे. आ सिवाय पण व्रज अने जूनी गुजरातीमां वर्णमाळाना '५२' अक्षरोना आधारे घणी बधी बावनी लखाणी छे - किशन बावनी, ब्रह्म बावनी, अक्षर बावनी आदि. संस्कृत अने देश्यभाषामां आवी वर्णमातृका अंगेनी घणी बधी गूढ रचनाओ मळे छे. पूज्य उपाध्याय श्रीमेघविजयजी म., जे गूढतत्त्वोना वेत्ता हता, एमणे पण मातृकाप्रसाद नामनो विराट ग्रन्थ रच्यो छे जे ५० पत्र प्रमाण छे. अमुद्रित अने अप्राप्य छे. एनी एक ज नकल में एक स्थाने जोई छे. पण मालिक ए प्रतने दबावीने बेठो छे. पू. सिद्धसेनसूरि रचित बीजी पण बे रचना मळे छे. एक छे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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