Book Title: Anusandhan 2003 04 SrNo 23 Author(s): Shilchandrasuri Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad View full book textPage 6
________________ उपाध्याय श्रीसकलचन्द्रगणिविरचितः श्रुतास्वादः सं. विजयशीलचन्द्रसूरि पंदरमा-सोळमा शतकना एक समर्थ ज्ञानी, ग्रन्थकार, चारित्रगुणसंपन्न साधुपुरुष एटले श्रीसकलचन्द्र वाचक, प्रतिष्ठाकल्प, संगीतशास्त्रानुसारी सत्तरभेदी पूजा, तथा अन्य विविध प्रगट-अप्रगट रचनाओना प्रणेता तरीके जाणीता आ जैन मुनिवरनी एक सरस प्राकृतबद्ध पद्यरचना अत्रे आपी छे. तेओना विषे पावली इत्यादिमां वर्णन मळे छे ते प्रमाणे तेओ अत्यन्त शान्तमूर्ति, समतारस परायण, आत्मानुभवरसिक, अन्तर्मुख साधुजन हता. गच्छनायको पण तेमनुं बहुमान करता अने तेमना मत-अभिप्रायने महत्त्व आपता. तेमनी एक आत्मबोधकारक रचना छे 'श्रुतास्वाद', जेने तेओए ज प्रथम गाथामां 'सुयस्साय' तरीके ओळखावी छे. १६४ प्राकृत पद्यो धरावती आ रचनामा ४० द्वार छे. २-११ गाथाओमां आ द्वारोनां नामो आपीने पछी क्रमशः ते दरेक द्वार विशे कर्ताए ज विशदीकरण आप्युं छे. कर्तानो आ रचवा पाछळनो आशय एक ज छे : नियअप्पसिक्खं - पोताना आत्माने शिक्षा आपवानो. तेमणे आ ४० द्वारोने, ११मी गाथामां, शिवगृहनां सोपानो तरीके वर्णवीने ते पर कमे कमे आरोहण करनार आत्मा मोक्षपद प्राप्त करे छे तेम जणाव्युं छे. 'श्रुतास्वाद'मां कर्ताए वसन्ततिलका, भुजङ्गप्रयात, उपजाति सहित विविध छन्दोनो प्रयोग खूब सहजताथी को छे. भाषा अत्यन्त सरल-प्रांजल, अने निरूपण एटलुं तो हृदयस्पर्शी-चोटदार छे के एक बाजु तो कोई महान शास्त्रग्रन्थना वाचननो अनुभव थाय तो बीजी बाजु एक रसाळ अने सशक्त कलम सतत अनुभवाया करे. आवी समर्थ कलम जवल्ले ज जोवा मळे. समग्र रचनामां मात्र एक गाथा (क्र. १०९) पूर्वतन शास्त्रग्रन्थमाथी अवतारेला उद्धरणरूप छे, तो पद्य क्र. ४३, ९२-९४, १०१, आ पांच पद्यो अपभ्रंशमां जणाय छे. क्र. ४८ मांनो 'भेगो' शब्दनो प्रयोग, आजे आपणी बोलीमांना 'भेगा' ए शब्दनुं स्मरण करावे छे. अहीं पण ए ते ज अर्थमां प्रयोजायो छे, ते जोतां आ शब्द 'देश्य प्राकृत' मूळनो होवो जोईए. पद्योमां Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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