Book Title: Anekant 2015 Book 68 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 11
________________ अनेकान्त 68/1, जनवरी - मार्च, 2015 जो जम्हि गुणे दव्वे सो अण्णम्हि दुण संकमदि दव्वे। सो अण्णमसंकंतो कह तं परिणामए दव्वं ॥ १०३ ॥ 11 अर्थ : जो वस्तु जिस स्वकीय द्रव्य में और जिस गुण में वर्तती है, वह अन्य द्रव्य में और अन्य गुण में संक्रमण को प्राप्त नहीं होती अर्थात् अन्यरूप नहीं पलटती। वह वस्तु जब अन्य में संक्रमण नहीं करती तो अन्य द्रव्य को उपादान-रूप-से कैसे परिणमा सकती है? (और, इसलिये, अन्य द्रव्य की कर्ता कैसे हो सकती है; क्योंकि यः परिणमति स कर्ता, यः परिणामो भवेत् तु तत्कर्म:" इस नियम के अनुसार, निश्चय से केवल उपादान ही कर्ता हो सकता है?) इस गाथा की टीका में आचार्य अमृतचन्द्र लिखते हैं : “इस लोक में जो कोई, जितनी वस्तुएं हैं वे सब अपने चेतनस्वरूप अथवा अचेतनस्वरूप द्रव्य में और गुणों में सहज स्वभाव से अनादि से ही वर्त रही हैं; वस्तुस्थिति की इस अचलित सीमा को तोड़ना, उसका उल्लंघन करना शक्य है। इसलिये जो वस्तु जिस द्रव्यरूप और जिन गुणोंरूप अनादि से है, वह उसी द्रव्यरूप और उन्हीं गुणोंरूप सदा रहती है, द्रव्य से द्रव्यान्तररूप और गुण से गुणान्तररूप उसका संक्रमण नहीं हो सकता।" दरअसल, प्रत्येक द्रव्य में पाए जाने वाले 'अस्तित्व' स्वभाव की ही यह विशेषता है कि जो द्रव्य जिस स्वभाव को प्राप्त है, वह उससे कभी भी च्युत नहीं होता; आलापपद्धति के रचनाकार आचार्य देवसेन के शब्दों में : ‘स्वभावलाभादच्युतत्वादस्तिस्वभावः। यही अभिप्राय प्रवचनसार, ‘ज्ञेयतत्वप्रज्ञापन अधिकार' में गाथा ९९ और उसकी तत्त्वप्रदीपिका टीका में व्यक्त किया गया है : ‘स्वभावे नित्यमवतिष्ठमानत्वात्सदिति द्रव्यम्' अर्थात् स्वभाव में नित्य अवस्थित होने से द्रव्य 'सत्' है, अस्तिस्वरूप है। यदि कोई प्रश्न करे कि विकारी परिणमन करने वाले द्रव्यों की यानी पुद्गलों और जीवों की द्वि-अणुक आदि एवं मनुष्य आदि वैभाविक पर्यायों के उत्पन्न होते हुए भी, क्या द्रव्य से द्रव्यान्तरण नहीं होता? ज्ञेयतत्त्वप्रज्ञापनाधिकार में ही आचार्य अमृतचन्द्र का उत्तर मिलता है कि नहीं; द्वयणुकादि तथा मनुष्यादि वे पर्यायें तो कदाचित्क (कभी, किसी समय होने वाली) अर्थात् अनित्य हैं, अतः उत्पन्न हुआ करती हैं; किन्तु द्रव्य तो अनादि-अनिधन या त्रिकालस्थायी होने से उत्पन्न नहीं हो सकता, तो फिर द्रव्यान्तरण कैसे हो सकता है? और फिर,

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