Book Title: Anekant 1987 Book 40 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 10
________________ अनेकान्त ८, वर्ष ४०, कि० १ प्रभु तुम जिस पथ से जाओगे, मेरी काया छाया होगी। 'काम' को निर्वेदोन्मुख कर दिया है। साधक महावीर को मेरे प्रभु बाल ब्रह्मचारी, पूजा नेरी माया होगी॥ तपस्या से डिगाने हेतु अप्सराओं द्वारा प्रदर्शित कामुक ___ श्रमण भगवान महावीर चरित्र-महाकाव्यकार चेष्टाओं के चित्रण भी शृंगार रसाभासी स्थल हैं । " कवि अरुणकुमार यौधेय ने बथ्य वर्णन में श्वेताम्बर परम्परा ने राजा सिद्धार्थ एव रानी त्रिशला के प्रेमपूर्ण मिलन का का अनुसरण किया है जो वर्द्धमान महावीर एवं यशोदा के जो वर्णन किया है वह अत्यंत मर्यादित है और वहाँ श्रृंगार विवाह का अनुमोदन करती है अतः प्रस्तुत प्रबन्ध मे रस की निष्पत्ति भी नही हो सकी है। शृंगार रस निष्पत्ति सम्बन्धी विशिष्टता यह है कि कवि रघुवीरशरण मित्र की मोति पौधेय जी ने यशोदा की ने महावीर को काम क्रीडा मे मग्न व्यंजित करने का विरह अभिव्यक्ति माध्यम से वियोग शृगार का समायोजन साहस किया है। कुमार महावीर का यशोदा के सौन्दर्य किया है। यशोदा का वियोग करुण मिश्रित प्रवास जन्य पर मुग्ध होकर वासना प्रेरित हो जाना पात्रगत मौचित्य विरह है जिसमे प्रिय से पुनर्मिलन की क्षीण-सी आशा भी की दृष्टि से विवाद का विषय हो सकता है परन्तु यह नही। कवि ने विरह व्यथिता यशोदा की 'स्मृति' 'व्यथा' मानवीय प्रवृत्ति के सहज अनकूल है। प्रतिक्रियात्मक शैली एव 'चिता' आदि की हृदयहारी अभिव्यजना की है ।२ में चित्रित महावीर-यशोदा सभागम की व्यजना रसोद्रेक तदुपरात इस विकल वेदना को प्रिय (महावीर) के प्रति में सक्षम है अनन्य भक्ति भाव मे परिणत कर भावोत्कर्ष का उदाहरण एक घड़ी ऐसी आयी थी जीवन में, प्रस्तुत किया है। सागर, नदिया से मिलने को था भागा ।। इस प्रकार स्पष्ट है कि अधिकांश महाकाव्यकारो ने टूट गयी डोर वासना जीत गयी, पात्रो को चारित्रिक गरिमा से अभिभूत होते हुए तथा मधुर मिलन मे घडिया कितनी बीत गयी। धार्मिक विश्वासो की सीमाओ को स्वीकारते हुए श्रृंगार पंख लगाकर प्यार गगन में विचर गया, चित्रण के अल्प प्रयत्न किए हैं। पं० अनुप शर्मा 'मित्र' जी थी अनग की सत्ता जैसे जीत गयी। एव 'यौधेय' जी ने कल्पना का सहारा लेते हुए साहसिक काया में काया के घुनने की बेला, प्रयास किए है और शृगारिक स्थलो की उद्भावना की आलिगित हो जैसे धरती और गगन ।" है। देखना यह है कि भविष्य के साहित्य निर्माता सीमाओ बाद मे यौधेय जी ने महावीर के अन्तर्मन मे वासना के बन्धन में ही रहते है या कुछ नवीन सम्भावनाए, इस और विवेक का सघर्ष तथा विवेक की विजय प्रदशित करके दिशा में, सम्मुख लाते है । लखनऊ ___ सन्दर्भ-सूची १. हिन्दी जैन साहित्य परिशीलन-पृष्ठ २२४-२२५ १०. वही पृ० ६५ २.विस्तृत विवेचन हेतु देखें पुस्तक- 'आधुनिक युग मे ११.परम ज्योति महावीर-धन्यकुमार जैन 'सुधेश', नवीन रसों की परिकल्पना' लेखक-डा० सुन्दरलाल पृ० १५१ कथूरिया। १२. वही, पृ० २७०-२७१ ३. वर्द्धमान--१० अनूप शर्मा, पृष्ठ ३५६ १३. पार्श्व प्रभाकर-वीरेन्द्र प्रसाद जैन, पृ० १२५-१२६ ४. अनुप शर्मा : कृतिया और कला-सम्पादक डा० १४.तीर्थंकर भगवान महावीर -वीरेन्द्रप्रसाद जैन, प्रेमनारायण टण्डन, पृ० ५० पृ० 'दो शब्द' के अन्तर्गत ५. वर्तमान-प. अनूप शर्मा पृ० ८५-८६ १५. वही, पृ० १५ १६. वही, पृ० १०७ ६. वही, पृ० ८६ ७. बही, पृ० ६१ १७. वही, पृ० ११०-१११ । ८. अनूप शर्मा : कृतियां और कला-सम्पा० डा. प्रेमनारायण टण्डन १५. वीरायन-रघुवीरशरण मित्र पृ० ८३ ६. परम ज्योति महावीर-धन्यकुमार जैन 'सुधेश', १६. वही, पृ० ८४ २०. वही, पृ० २८३-२८५ २१. वही, पृ०२४० २२. वही, पृ० २५५

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