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किरण
वंगीय जैन पुरावृत्त
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है अनेकों धर्मसंभषम कितीही विभिन्न मादायक प्रबल इन सब महास्मानांके प्रयाससे सहनों लोग जैनधर्ममे
आक्रमणांमे बहसमाज धानांन हमा है, और कितने दीक्षित हुए थे। और इन्हींके प्रभावमे यहाँक ग्राह्मणांके विषम शेखासं इसका वलस्थल घायल हुआ है। आज हृदयमे कर्मकांडोंके प्रति भास्था कम होनी गई । कर्मकांडों यह कौन जानता है।
का पादर कम होने पर माहाणेतर विधर्मागम कर्मकांडका वनमान ऐतहामिागण घोषणा करेंगे कि इस समाज
अनादर और निदा करने लगे। उत्साहके प्रभावमें और
निर्वातस्थानमें अग्निकी तरह साग्निक ब्राह्मणगण निरा: का जो अध: ताहु उसका भूल है बौद्ध विप्लव । सिन्तु बम गिक केवल बौडॉय इम समाजका विशेष
ग्निक हो गये । इमी ममय उन बाक्षणांकी रय-सामाजिक अनिष्ट माधिन मा हाना है। जिस प्रकार बहु सहमवों
और धर्मनैतिक भवतिका सूत्रपात हुमा । उसके बाद पूर्व : इस समाजका अभ्युग्थान उमा था उसी प्रकार सम्राट अशोककी अनुशामन लिपिम 'अहिंसाका माहा-म्य बावधर्म प्रचारक पहल ही इनका पतनारम्भ हुमा ।।
या सर्वत्र प्रचारित हुश्रा और जनसाधारणका मन उसमे पहले ये ब्रह्मण वेदमार्ग पग्भ्रिष्ट नहीं थे और वेदविद्
. विलिन हुआ । यहाँके अधिकांश ब्राह्मणोंने वैदिकाचारका और याग्निक माहाण कहे जाते थे। किन्तु यहाँ (बंग)
परित्याग किया। जिन्होंने पहले ब्राह्मणधर्म परित्याग की जलवायुका ऐसा गुण है कि मय काई नित्यनूतनके
नहीं किया वे वैदिकी पूजा विसर्जन कर पौराणिक देवपक्षप नी है यौर पुगतनके साथ नननको मिलाने के लिए
पूजामें अनुरक्त हो गये । पौराणिक देव पूजाका प्रभाव तस्पर रहते है । इस आवहवामे पुरातन वैदिक मार्गके
बंग वामियों पर हुआ। जिस समय बंगालमें पौराणिक ऊपर भी अभिनय माम्मदःयिकाफी भीषण मटिका प्रवाहित
देवपूजाका प्रसार हो रहा था उस समय धीरे धीरे उसके हुई थी । उनीक फन गौड (वंग) देशमें जैनधर्मादिका
अभ्यन्तरमे बौद्धमान प्रवेश कर रहा था। पौराणिक और
बौद्धगणांके संघर्ष में बौधर्मने जय लाभ किया। जैन अभ्युदय हुअा। जब भगवान् शाक्य बुद्धने जम्म ग्रहण नहीं किया था उसके पहले ही गौवंशमै शव, कोमार, और
प्रभृति अन्य प्रबल मत भी क्रममे उसके अनुवर्ती होने जैनमन प्रवर्तित थे। जैनांके धर्म-नतिक इतिहासमं पता
लगे। इसी समय गौड मंडल में तांत्रिकताकी सूचना प्रारम्भ चलना है कि शावयबुद्धम बहुत पहल बंगालमें जैन प्रभाव
हुई। वैदिकोंका प्रभाव ती पहिली तिरोहित हो चुका
था। अब पौराणिक भी नतमस्तक हो गये। विस्तत हो गपा था। जैनांक चौबीसा तीर्थंकर शाक्ययुद्धके पूर्व पीं हैं और इनमें २१ तीर्थकरांक माथ गालका स्वृष्टीय ( इसबी) अष्टम शताब्दिमें गोडमें फिर संवाय इ. १२वनी र वमुपजाने भागलपुरक बाटाणधर्म पुनरभ्युदग हुा । इमी समय गौश्वरनं निटी मार्गमा किया और मांच लाभ कान्यकुब्ज पंच साग्निक ब्राह्मणांका आमन्त्रण कर किया और द्वितीय व २१ और २१वें बुलाय । इसी समय गांडीय ब्राह्मणांन 'सप्तशती' प्राख्या श्री पाण्वनाब हुन २० नागने मानभूम जिलास्थ मम्मंद- प्राप्तकी। उस समय गौतम ७.. घर उन प्राचीन शिवगतमान पवनाथ पर्वत र मुक्त हुए ' पार्श्वनाथका पाहाणांक थे जिनका वंदाधिकार नहीं था । कम्नांजागन पंच नि.ग ७७७ पूर्वालने हया था । इन्होंने दैदिक ब्राह्मणांस ७.. ग्राहकांके. पार्थक्य या भिवता रखनके कर्मकाहार पंचनिमापन निकी विशेष निदा की लिये सप्तशती' प्राण्याकी मुष्टि हुई दूसरा अभिमत थी। उस समय म बार भार पंचाग्निमाधनादि अनेक यह है कि मरम्यती नदीक नीरवासी सारस्वत ब्राह्मण ही कमकाण्ड प्रचलन । पाश्वनाथकी जीवनीसं इनका सर्वप्रथम गोडदेशमें पाये थे और राढ़ दशके पूर्वाशमें अनेक प्राभार मिलना है । नीर्थकरगण कर्मकाण्ड सप्तशतिका ( वर्तमान सातसइका ) नामक जनपदमें वास विपी होने पर भी ग्राह्मण विपी कोई न थे। सभी करके कारण सप्तशती या माताती नाम कई जान ब्राह्मणांका यांचा 6. श्रद्धा करतेय अब भी जैन लगे। इस मप्तशतिका जनपदका कितना ही अंश अब बर्द्धसमाजम उसका पालन ।
मान जिलमं मातशतकाया सातमहका परगनामें परिणत ही