Book Title: Anekant 1954 Book 12 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 381
________________ ३२८] अनेकान्त [किरण १० सहित, देवियाँ कृषिका सहित प्रदर्शितकी गई हैं। - एक विशाल तीर्थकर मूर्ति चमरेन्द्रों सहित संभवतः वईद्वारपाल । -छतका शिलाखण्ड जिसकी चौकोर वेदीमें मानकी है। नेमिनाथ और अम्बिकाकी मूर्ति भी है। इस कीर्तिमुख प्रदर्शित किये गए हैं।१०-समासन वईमान टीलेकी बुवाई होनी चाहिए । यहाँ दशवीं शताब्दीका मंदिर प्रतिमा और उसके ऊपर पाश्र्वनाथकी मूर्ति स्तम्भ पर अंकित प्राप्त होनेकी सम्भवना है। है।"-बगासन व मान, अमरेन्द्र तथा छत्रत्रयादि ७ गंधर्वसेनकामन्दिर-स मन्दिरमें एक प्रस्तरप्रातिहारों सहित । १२-शिलापट्टचौवीस तीर्थकरों सहित। खण्ड पर पार्श्वनाथको उपसर्गके बाद केवलज्ञान प्राप्तिका १३-शान्तिनाय, इसके नीचे दानपति और प्रतिष्ठाचार्य दृश्य अंकित है। यह प्रस्तरखण्ड वशमी शताब्दीसे पूर्व भी प्रणाम करते हुए प्रदर्शित किए गए हैं । १४-शांतिनाथ और पर गुप्त कालीन मालूम होता है। इसके अतिरिक्त १५-हस्तिपदाद चतुर्भुज इन्द। १६-पमप्रभु। वर्तमान और आदिनाथकी मूर्तियाँ हैं। १७-सुमतिनाथ । १८इन्द्र हाथीपर । १६-मातंग बालिकाविद्यालय-यहाँ दो तीर्थकरोंकी मूर्तियाँ और सिहायनी सहित वईमान । २० द्वारपाल वीणा- हैं। उज्जैनमें सिन्धिया प्रोरियन्टल इन्स्टीव्य ट है जहाँ सहित चास्या, मातंगया, और शंखनिधिसहित । हजारों हस्तलिखित प्रन्योंका संग्रह है जिनमें जैनग्रन्थ भी २-उक्र भवानीमन्दिरसे ५० फीट दक्षिण पूर्वमें काफी हैं, जिनकी सूचीके लिये पुस्तकाध्यक्षको लिखा गया नेमिनाथकी मूर्ति है। तथा प्रादिनाथका मस्तकभाग, एक है। यहाँ को मूर्तियों के फोटो आगामी अंकमें प्रकाशित यक्षी, और बर्द्धमानकी मूर्ति है। किये जायंगे। ३. दरगाह-यहाँ व मानकी मूर्तिको लपेटे हुए एक श्रमणका उत्तरलेख न छापना बड़का वृक्ष है जहाँ निम्नलिखित मूर्तियों हैं। -सिद्धायनी और मातंग यशपहित बईमान । २-अम्बिका यक्षी और दो महीनेसे अधिकका समय हो चुका, जब मैंने श्रमण सर्वारहयच खगासन । ३-कश्वरी आदिनाथ । ४- वर्ष ५ के दूसरे अंकमें प्रकाशित जैन साहित्यका विहंगालोकन नामक लेखमें 'जैन साहित्यका दोषपूर्ण विहंगावलोकन' नामपार्श्वनाथ । नेमिनाथ । -ईश्वर (शिव) यक्ष का एक सयुक्रिक लेख लिखकर और श्रमणके सम्पादक डा. श्रेयांसनाथ । १०-त्रिमुखयक्ष संभवनाथ । ११-त्रिमुख- इन्द्रका प्रकाशनाथ दिया था। परन्तु उन्हान उस भपन पत्रम यक्ष । १२ धर्मचक्र गोमुखया और चक्रेश्वरी (आदिनाथ) अभी तक प्रकट नहीं किया, इतना ही नहीं किन्तु उन्होंने ४. शीतलामाता मन्दिर-यहाँ चक्रेश्वरी, गौरीयक्षी, ला. राजकृष्णाजी को उसं वापिस लिवानेको भी कहा था, नेमिनाथकी यह यक्षी (अम्बिका)। आदिनाथ, वर्द्धमानकी और मुझे भी वापिस लेनेकी प्रेरणाकी थी और कहा था कि खड्गामन मूर्तियाँ, शीतलनाथकी यही माननी, पार्श्वनाथ, आप अपना लेख वापिस नहीं लेंगे तो मुझे अपनी पोजीशन किसी तीर्थकरका पादपीठ, दशवें तीर्थकरका यज्ञ मी श्वर, क्लीयर (साफ) करनी होगी। मैंने कहा कि आप अपनी एक तीर्थकरका मस्तक, तथा अनेक शिलापर, जो एक चबूतरे पोजीशन क्लीयर (साफ) करें, पर उस लेखको जरूर प्रकामें जड़े हुए हैं उन पर तीर्थंकरोंकी मूर्तियाँ अंकित है, एक शित करें। परन्तु श्रमणके दो अंक प्रकाशित हो जाने परभी तीर्थकर मूर्तिका उपरका भाग, जिसमें सुर पुष्पवृष्टि प्रदर्शित डा. इन्द्रने उसे प्रकाशित नहीं किया। यह मनोवृत्ति बढ़ी ही है, बईमानकी मूर्ति। चिन्स्यनीय जान पड़ती हैं और उससे सत्यको बहुत कुछ आघात पहुंच सकता है। हम तो इतना ही चाहते हैं कि ५ हरिजनपुर-यह एक नया मन्दिर है जिसकी दीवालों पर लेमिनाथ, पाश्र्वनाथ, मुमतिनाथ और मातंगयर जिन पाठकोंके सामने श्रमणका लेख गया उन्हीं पाठकोंके की मूर्तियाँ अंकित हैं। सामने इमारा उत्तरलेख भी जाना चाहिए, जिससे पाठकों को वस्तु-स्थिति के समझनेमें कोई गल्ती या भ्रम न हो। ६ चमरपुरीकी मात-यह एक प्राचीन टीला है यहाँ का व इमलीके पूरके नीचे जैनमूर्तियाँ दबी हुई हैं। १२ फीट की -परमानन्द जैन

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