Book Title: Anekant 1954 Book 12 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 399
________________ ३४२1 अनेकान्त किरण १ प्रगतिका फल नथी, बल्कि यह भारतकी द्रविड़ संस्कृतिका इन्हें विदेशी और अपनी परम्परा विरुद्ध समझकर सदा ही उसे एक अमर देन थी । यही कारण है कि भार्यजाति- इनका विरोध करते रहे और इन दार्शनिकोंको देवता-द्रोह की अन्य हिन्दी यूरोपीय शाखाएँ जो यूरोपके अन्य देशोंमें और अत्याचारका अपराधी ठहरा। इन्हें या तो कारावास जाकर मावाद हुई, वे भारतकी दस्युसंस्कृतिका सम्पर्क न में डाल दिया या इन्हें देश छोड़ने पर बाध्य किया। मिलनेके कारण अध्यात्मिक वैभवमे सदा वंचित ही बनी चुनांचे हम देखते हैं कि डायोजिनीस (१००ई० पूर्व) रही। ईसा पूर्व की छठी सदीसे यूनान देशकी सभ्यता और प्रोटोगोरस (१६०ई० पूर्व) को एथेन्स नगर कोड और साहित्यमें नो माध्यामिक फुट नजर पाती है और वहाँ कर विदेश जाना पड़ा और सुकरात (४००ई० पूर्व) को पथ्यगोरस, डायोजिनोस, कोटामोरण. जैना, पलेटो, सुक विष भरा जाम पी अपने प्राणोंसे विदा लेनी पड़ी। इस रात, जैसे अध्यात्मवादी महा दार्शनिक दिखाई पड़ते है, अध्यात्मविद्याके साथ जो दुर्व्यवहार उक्त काल में यूनान उनका एकमात्रध्येय आत्मविद्याके अमरदूत भारतीय संता- निवामियाने किया वही दुर्व्यवहार आजसे खगभग २००० को ही है, जो समय समय पर विशेषतया बुद्ध और महा- वर्ष पूर्व फिलिस्तीन निवासी यहूदियोंने प्रभु ईसाकी जान वोरकालमें तथा उनके पीछे अशोक और सम्प्रतिकाल में लेकर किया। उन यूनानी दार्शनिकोंके समान प्रभु ईसा पर यूनान, ईराक सिरिया, फिलिस्तीन, इथोपिया, प्रादि भारतीय सन्तोंके त्यागी जीवन और उनके उच्च प्राध्यादेशोंमें देशना और धर्मप्रवर्तनाके लिए जाते रहे हैं। उन्हीं. मिक विचारोंका गहरा प्रभाव पड़ा था। भारत यात्रासे की दी हुई यह विद्या यूनानसे होती हुई रोमको ओर लौटने पर जब उसने अपने देशवासियोमें जीवकी भमरता प्रसारित हुई है। परन्तु इस सम्बन्धमें यह बात याद रखने मास्म-परमात्माकी एकता, अहिंसा संयम, तप, त्याग, योग्य है..क्यपि भारतीय सन्तोंके परिभ्रमण और देशना- प्रायश्चित्त धादि शोध मार्गका प्रचार करना शुरू किया तो के कारण यूनान में माध्यामिक विचारोंका उत्कर्ष जरूर उस पर ईश्वर-द्रोह और भ्रष्टाचारका अपराध बगा फांसी हमा । परन्तु अभ्यास्मिक संस्कृतिकी सजीव धारासे अलग पर टांग दिया गया। रहने के कारण, ये वहाँ फलोभूत न हो सके। वहाँ के लोग युग-परिवर्तन श्री मनु 'ज्ञानार्थी' साहित्यरत्न, प्रभाकर देख रहा हूँ युग-परिवर्तन, यहाँ कहाँ पर स्वार्थ नहीं है ? आज जगतके मदिरालयमें, अपना अहम् बनाये रखना; दना मद्यपी पागल मानव परका लघु अस्तित्व मिटाना, आत्मज्ञानसे शून्य हो चला अपना जीवन हो चिर सुखमय; परके दुःखका ज्ञान न कण भर परके जीवन पर छा जाना, मुख पर तो देवत्व झलकता इसी अहम्की मृग-तृष्णामें; अन्तरमें दानवता छाई छलकी चिर-सञ्चित छलनामें; वचनोंमें याडम्बर कितना उलझ रहा है पागल मानव तदनुसार आचार नहीं है। अपने पनका भान नहीं है। देख रहा हूँ युग-परिवर्तन, देख रहा हूँ युग-परिवर्तन, यहाँ कहाँ पर स्वार्थ नहीं है ? यहाँ कहाँ पर स्वार्थ नहीं है ?

Loading...

Page Navigation
1 ... 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452