Book Title: Anekant 1954 Book 12 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 423
________________ मूलाचारकी कुंदकुंदके अन्य ग्रंथोंके साथ समता (पं० हीरालाल सिद्धान्त शास्त्री ) भनेकान्तकी गत किरणमें मैंने मूलाचारकी मौलिकता (३) वंदित्त देवदेवं तिहणमहिदं च सव्वसिद्धार्गबतलाते हुए उसके रचयिताकी भोर संकेत किया था और (मुलाचार, १०.) यह बतलाया था कि 'वट्टकेराइरिय' यह पद ही मूलाचार ____वंदित्तु सव्वसिद्धे (समयपाहुड, 1,) रचयिता के नामका स्वयं उद्घोष कर रहा है। और वे बर्तकाचार्य कुन्दकुन्द की है। अब इस लेखद्वारा मूलाचार __वंदित्तु तिजगवंदा अरहता (चारित्रपाहुन ) की कुन्दकुन्दाचार्य के अन्य प्रन्थोंसे शब्द-साम्य और अर्थ- णमिऊण जिणवरिंदे णर-सुर-भवणिंदवंदिए मिद्धे । । साम्यक साथ-साथ शैली-गत समता बतलाते हुए यह भावपाहुर, ) दिखाया जायगा कि मूलाचारकी गाथाएं कुन्दकुन्दके अन्य सिद्धाणं कम्मचक्वजाणं। प्रन्थों में कहां और किस परिमाणमें पाई जाती हैं, जिससे (मूलाचार, १२, १) कि मूलाचारके कर्ता प्रा० कुन्दकन्द ही हैं, यह बात भली सिद्धवरसासणाणं सिद्धाणं कम्मचक्कमुक्काणं । भांति जानी जा सके। शेली-समता काऊण णमुक्कार। (श्रुतभक्ति ) जिस प्रकार कुन्दकुन्द-रचित पाहा, ग्रंथों और ग्रन्थ सिदण य झाणुत्तमखविददीहसंसारे। गत अधिकारोंके प्रारम्भमें मंगलाचरण पाया जाया है, ठीक दह दह दो दोय जिणे दह दो अणुपेहणं वाच्छं। उन्हीं या उसी प्रकारके शब्दोंमें हम मूलाचार-गत प्रत्येक ( मूलाचार, ८, १) अध्यायके प्रारम्भमे मंगलाचरण देखते हैं। यहाँ उदाहरब- णमिऊण सव्वसिद्धे झाणुत्तमखविददीहसंसारे । के तौर पर कुछ नमूने प्रस्तुत किए जाते हैं : दस दस दो दो य जिण दस दोअणुपहणं वान्छे ।। (१) एस करेमि पणामं जिणवरवसहस्स बड्ढमाणस्स । (वारस अणुवेक्खा . ) सेसाणं च जिणाण सगण-गणधराणं च सव्वेसि॥ उक्त अवतरणांसे पाठकगण स्वयं यह अनुभव करेगे (मूलाचार, ३.५) कि मंगलाचरणके इन पद्योंमें परस्पर कितना साम्य है। काऊरण णमुक्कार जिणवरवसहस्स वड्ढमाणस्स। इनमें नं० २ का उदाहरण तो शब्दशः ही पूर्ण समता (वर्शनपाहर रखता है। यही हाल नं.४ के अवतरणका है उसमें चउवीसं तित्थयरे उसहाइवीरपच्छिम वंदे। मूलाचारके प्रथम द्वितीय चरण श्रतभक्तिके द्वितीय तृतीय सव्वे सगणगणहरे सिद्धे सिरसा णमंसामि॥ चरणके साथ शब्दशः समता रखते हैं भेदकेवल 'वजाणं' (चतुर्विशति तीर्थकरक) के स्थान पर 'मुक्का' पदका है, जो कि पर्यायवाची ही एवं पमिय सिद्धे जिणवरवसह पुणो पुणो समणे। है। पांचवें उद्धरणको तो पूरी गाथा की गाथा ज्यो की त्यों दोनोंमें समान है, केवल प्रथम चरणके दोनों पद एक (प्रवचनसार २०१) इसरेमें आगे पीछे रखे गये हैं। 'दस' मादि पदोंके 'स' (२) काऊण णमोकारं अरहंताणं तहेव सिद्धाणं। के स्थान पर 'ह' पाठ और 'बोच्छं' के स्थान पर 'बोच्छे' (मूलाचार, ...) पाठ भी माकृत भाषाके नियमसे बाहिर नहीं हैं। मंगलाकाऊण णमोकार अरहताणं तहेव सिद्धाणं। चरणकी यह समता मूलाचारको कुन्दकुन्द-रचित माननेके (लिगपाहुर) लिए प्रेरित करती है।

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